उपभोक्ता निकाय - पॉलिसी धारक

उपभोक्ता निकाय

बीमा के विषय में जागरूकता सृजन हेतु आईआरडीएआई विविध माध्यमों का उपयोग करता है तथा उपभोक्ता संस्थाएँ, इस क्षेत्र में एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

 

आईआरडीएआई, उपभोक्ता संस्थाओं को बीमा पर सेमिनार आयोजन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस तरह न केवल उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाता है, बल्कि बीमा के विषय में आईआरडीएआई से संपर्क के लिए उपभोक्ताओं हेतु प्लेटफार्म भी उपलब्ध कराया जाता है।

 

देश के विभिन्न भागों में जनता तक पहुंचने के लिए तथा उपभोक्ताओं तक जानकारियों का प्रसार सुगम बनाने के लिए आईआरडीएआई, बीमा एवं उपभोक्ताओं संबंधित विविध विषयों पर अनेक राष्ट्रीय स्तरीय सेमिनारों के स्वयं आयोजन, ऐसे आयोजनों में भागीदारी और सहयोग भी करता है।

 

हाल ही में विभिन्न उपभोक्ता संगठनों द्वारा आईआरडीएआई के आंशिक प्रायोजन में स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा, तथा पॉलिसीधारकों के अधिकारों एवं दायित्वों के विषयों पर सेमिनारों के आयोजन किए गए।

 

आईआरडीएआई की प्रायोजक स्कीम

 

आईआरडीएआई, उपभोक्ता संगठनों द्वारा आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों को निम्न शर्तों के आधार पर रु. 1 लाख तक की राशि से प्रायोजित करता है

 

आईआरडीएआई निम्न वहन कर सकता है

 

1सेमिनार हेतु वहन किए गए व्यय का 50% रु. 1 लाख की सीमा तक के अंतर्गत

2 पूर्वानुमानित व्यय का 75% तक या रु. 75,000 में से जो कम हो, अग्रिम के रूप में प्रदान किया जा सकता है

3शेषराशि का भुगतान, मूल बिलों की प्राप्तगी या बिलों की प्रतियाँ संगठन के ऑडिटर द्वारा समुचित प्रमाणित रूप में प्राप्त होने पर ही किया जाएगा

4 प्रायोजन धनराशि को केवल निम्न हेतु ही व्यय किया जा सकता हैः

शैक्षणिक सामग्री का विकास

प्रचार-प्रसार पर व्यय

फैकल्टी द्वारा प्रेजेंटेशन से संबंधित व्यय

अवसंरचनात्मक तथा अन्य व्यय, जैसे कि लंच, चाय, स्नैक्स और फोटोग्राफ, लेकिन इसके लिए आईआरडीए की प्रतिपूर्ति का केवल 25% भाग ही व्यय किया जा सकेगा

 

आईआरडीएआई, ऐसी उपभोक्ता संस्थाओं (न्यास/समिति/एनजीओ/शोध संस्थान तथा आईआरडीएआई द्वारा अनुमोदित कोई अन्य निकाय) से प्राप्त अनुरोधों पर ही प्रायोजन हेतु विचार करता है जो

1 पॉलिसीधारकों की शिक्षा, बीमा तथा विवाद समाधान पर अनुसंधान आदि विषयों से संबंधित सेमिनार या अन्य शैक्षणिक गतिविधियों को आयोजित किया हो या आयोजित करने हेतु ज्ञान आधार रखते हों:

2 उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार द्वारा पंजीकृत हों, या

3 किसी सरकारी प्राधिकरण या राज्य सरकार के विभाग द्वारा अनुशंसित हों

4 भारत में अन्य विनियामक के यहाँ पंजीकृत हों

5 इसे सिद्ध कर सकें कि उनके पास अनिवार्य अवसंरचना मौजूद है और वे अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं

 

 

प्रस्तावों का परीक्षण करते समय, देश में संदेश/शों के अधिकतम प्रसार का उद्‌देश्य प्राप्त करने के लिए भौगोलिक और क्षेत्रीय कारकों को समुचित महत्त्व दिया जाएगा।