आईआरडीएआई के जागरूकता अभियान (2010-2015) की दोपहर के भोजन के उपरांत सर्वेक्षण रिपोर्ट - पॉलिसी धारक

आईआरडीएआई के बीमा जागरूकता अभियानों के प्रारंभ के बाद सर्वेक्षण रिपोर्ट (2010-2015)

2009-10 से, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बीमा संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं के बारे में उपभोक्ताओँ को शिक्षित करने के लिए प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, और अन्य मीडिया के द्वारा विभिन्न उपभोक्ता शिक्षण पहलू किये हैं। प्रयुक्त मीडिया माध्यमों में प्रिंट विज्ञापन, टीवी और रेडियो स्पाट, कामिक बुक्स, पोस्टर, पालिसीधारकों की पुस्तिकाएँ, ऐनिमेशन फिल्में, वर्चुअल दौरे, दिल्ली मेट्रो पर एक बीमा शिक्षण अभियान, इंटरनेट अभियान, यू ट्यूब, तथा अन्य उपभोक्ता शिक्षण कार्यशालाएँ शामिल हैं।

एनसीएईआर ने 2010-11 में आईआरडीएआई के लिए बीमा जागरूकता का एक प्रारंभ-पूर्व सर्वेक्षण संचालित किया। इस एनसीएईआर अध्ययन में बीमा की जागरूकता के निम्न स्तर विशेष रूप से गैर-जीवन बीमा में पाये गये, जहाँ सर्वेक्षण किये गये केवल 54 प्रतिशत घर-परिवारों को ही इस प्रकार के बीमा की जानकारी थी। इस अध्ययन ने उपभोक्ता बीमा जागरूकता को बढ़ाने की आवश्यकता को दृढ़तापूर्वक निर्दिष्ट किया है।

आईआरडीएआई ने हाल ही में पुनः एनसीएईआर से पूर्व में किये गये सर्वेक्षण के अनुवर्तन के रूप में 2010 के बाद किये गये राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियानों और त्रिपुरा में की गई एक विशेष पहल की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने का अनुरोध किया। इस कार्य के लिए एनसीएईआर ने 2015 में भारत में 30 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) में दोनों ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक सर्वेक्षण संचालित किया।

उक्त अध्ययन में समाविष्ट राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) में शामिल हैं, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दमण और दीव, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पुदुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिल नाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल। 

यह नया सर्वेक्षण जीवन, स्वास्थ्य और साधारण बीमा के लिए बीमित और अबीमित घर-परिवारों की बीमा जागरूकता का मापन उनकी सामाजिक-आर्थिक विशिष्टताओं की पृष्ठभूमि के आधार पर करता है। यह छल-कपटपूर्ण फोन-कालों से संबंधित आईआरडीएआई के विज्ञापनों, बीमित व्यक्तियों के अधिकारों और कर्तव्यों, तथा शिकायत और विवाद निवारण व्यवस्थाओं के संबंध में घर-परिवारों की जागरूकता का भी मापन करता है। एनसीएईआर टीम ने आईआरडीएआई और अन्य कंपनियों द्वारा चलाये गये जागरूकता अभियानों की प्रभावकारिता का विश्लेषण करने के लिए कई आयामों पर अपने 2010 के सर्वेक्षण की तुलना 2015 के सर्वेक्षण के साथ की है।

उक्त अध्ययन बीमा उत्पादों के बारे में आंचलिक और अंतर-राज्य स्तरों पर अपने निष्कर्षों तथा बीमित और अबीमित घर-परिवारों के बीच अंतरों एवं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच उनकी जागरूकता के संबंध में अंतरों का विवरण प्रस्तुत करता है। जहाँ भी संभव है, वहाँ दोनों सर्वेक्षण अवधियों के बीच तुलनाएँ की गई हैं। बीमा न खरीदने के लिए विद्यमान कारणों की पहचान करने के लिए, उक्त अध्ययन बीमारहित घर-परिवारों की जागरूकता के स्तरों का विशिष्ट रूप से आकलन बीमा के लिए उनकी आवश्यकता, उपलब्ध बीमा के प्रकार, तथा यूनिट सहबद्ध बीमा योजनाओं में निवेश के लाभों के संबंध में करता है। प्रमुख कारण बीमारहित लोगों के बीच निम्नतर स्तरीय आर्थिक संसाधनों और निम्नतर स्तरीय शिक्षा से पहचाना जा सकता है। इससे समाज के विभिन्न वर्गों के लिए अधिक सूक्ष्म भेद से युक्त बीमा उत्पादों के लिए मामला बनता है। इसके अतिरिक्त, हाल के वित्तीय घोटालों की शृंखला के कारण ऋण-सहबद्ध बीमा ने प्रगति नहीं की है।

एनसीएईआर के अध्ययन में त्रिपुरा के संबंध में एक चर्चा शामिल है क्योंकि आईआरडीएआई ने जनवरी 2015 में इस राज्य में राज्य सरकार के सहयोग से एक विशेष अभियान चलाया है। यह अभियान दो वर्ष की अवधि में 100 प्रतिशत वित्तीय साक्षरता और वित्तीय समावेशन प्राप्त करने के लिए अभिकल्पित किया गया है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि उक्त राज्य में अध्ययन के जिलों में दोनों बीमित और बीमारहित घर-परिवारों में जीवन और स्वास्थ्य बीमा के बारे में जागरूकता के स्तर में सुधार आया है। राज्यों के साथ भागीदारी इस प्रकार उच्चतर बीमा जागरूकता और उसके द्वारा समावेशन प्राप्त करने के लिए अग्रसर होने का एक रचनात्मक मार्ग सिद्ध हो सकती है।

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