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संदर्भ सं.: आईआरडीए/एफएण्डए/ओआरडी/116/7/2019 दिनांकः 17-07-2019
रिलायंस निप्पोन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में
रिलायंस निप्पोन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में
आईआरडीए अधिनियम, 1999 की धारा 14 की उप-धारा (1) के साथ पठित
बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64के(2) के अधीन जारी आदेश
- भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इस आदेश में इसके बाद “प्राधिकरण” के रूप में उल्लिखित) ने बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 3 के अनुसार भारत में जीवन बीमा व्यवसाय करने के लिए रिलायंस निप्पोन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. (पूर्व में रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. के रूप में ज्ञात, इस आदेश में इसके बाद “बीमाकर्ता” / “आरएनएलआईसी” के रूप में उललिखित) को सं. 121 से युक्त पंजीकरण प्रमाणपत्र 3 जनवरी 2002 को जारी किया। उसके अनुसार, उक्त पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तों के अधीन था तथा उससे बीमा अधिनियम, 1938 (इस आदेश में इसके बाद “अधिनियम” के रूप में उल्लिखित), बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (आईआरडीए अधिनियम, 1999) तथा समय-समय पर प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये दिशानिर्देशों/परिपत्रों/अन्य निदेशों के उपबंधों का भी पालन करने की अपेक्षा थी।
- बीमा नियम, 1939 के नियम 17डी और आईआरडीए परिपत्र सं. आईआरडीए/ एफएण्डआई/सीआईआर/ईएमटी/085/04/2012 के साथ पठित बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40बी के अनुसार भारत में जीवन बीमा व्यवसाय करनेवाले प्रत्येक बीमाकर्ता से अपेक्षित है कि वह प्राधिकरण को बोर्ड द्वारा लेखों के अंगीकरण की तारीख से 15 दिन के अंदर वित्तीय विवरणों के साथ ही, प्रबंधन व्ययों (ईओएम) का एक विवरण प्रस्तुत करे। बीमाकर्ता ने वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए ईओएम का अपना विवरण दिनांक 19 अगस्त 2016 के अपने ई-मेल के दवारा प्रस्तुत किया।
- उक्त विवरण का अवलोकन करने पर यह पाया गया कि ए 1069.20 करोड़ रुपये की अनुमतियोग्य व्यय सीमा की तुलना में बीमाकर्ता के वास्तविक प्रबंधन व्यय ए 1632.24 करोड़ रुपये थे। प्रबंधन व्ययों का प्रतिशत बीमा नियम, 1939 के नियम 17डी के अंतर्गत अनुमतियोग्य सीमाओं का 153% था। यह पाया गया कि बीमाकर्ता ने बीमा नियम, 1939 के नियम 17डी के साथ पठित बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40बी की अपेक्षाओं का पालन नहीं किया। अतः उक्त अननुपालन के लिए स्पष्टीकरण दिनांक 25 अप्रैल 2017 के पत्र 446/12के/एफएण्डए/ईएमएल/2015-16/28/2016-17 के द्वारा माँगा गया।
- बीमाकर्ता ने अऩ्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित वक्तव्य देते हुए अपना प्रत्युत्तर पत्र संदर्भः ओ/05-17/एलसीसीएस/9885 दिनांक 19 मई 2017 के द्वारा प्रस्तुत कियाः
- आरएनएलआईसी ने ग्राहकों को एक व्यापक दायरे में बीमा उत्पाद उपलब्ध कराते हुए गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में जोखिम उठाया है। ……………… इस प्रक्रिया में हमें प्रबंधन के भारी व्यय करने पड़े।
- हमारी कंपनी एजेंसी द्वारा संचालित कंपनी है तथा यह बैंकेश्योरेंस के अभाव में एक दीर्घकालिक एजेंसी वितरण स्थापित करने में, स्तर-3 और स्तर-4 में शाखाएँ स्थापित करने में निवेश करता रहा है, यद्यपि यह ऐसी लागतों पर करता रहा है जो लंबी अवधि में प्रतिलाभ प्रदान करेंगी।
- वित्तीय वर्ष 11 के दौरान विनियमों में भारी परिवर्तनों और वित्तीय वर्ष 13 तक बने हुए विनियामक बड़े बदलावों के कारण कंपनी के नये व्यावसायिक प्रीमियम उल्लेखनीय रूप में कम किये गये हैं।
- अव्यवहार्य कमीशनों के कारण 1 अप्रैल 2011 से 31 मार्च 2015 तक 2 लाख से अधिक परामर्शदाताओं ने कंपनी को छोड़ दिया है।
- प्रतिकूल समष्टि-आर्थिक कारकों और वैश्विक बाजार में परिवर्तन (मेल्ट डाउन) ने भारत में पूँजी बाजार की अस्थिरता के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
- बीमाकर्ता के प्रस्तुतीकरण निम्नलिखित कारणों से तर्कसंगत नहीं पाये गयेः
- पैरा 4(क) और 4(ख): वित्तीय वर्ष 2015-16 परिचालनों का 15वाँ वर्ष है तथा बीमाकर्ता ने वित्तीय वर्ष 2008-09 से वित्तीय वर्ष 2015-16 तक 8 वर्षों में से 6 वर्षों में ईओएम सीमाओं का अनुपालन नहीं किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि बीमाकर्ता का व्यवसाय माडल, प्रबंधन व्ययों का नियंत्रण प्राप्त नहीं कर पाया है। इससे, आगे पालिसीधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिसे नियुक्त बीमांकक के दिनांक 3 जुलाई 2017 के पत्र में भी निर्दिष्ट किया गया है (नीचे पैरा 7 देखें)।
- उपर्युक्त पैरा 4(ग): विनियामक परिवर्तन बीमा संबंधी विधान, विशेष रूप से आईआरडीए अधिनियम, 1999 की धारा 14 के उपबंधों के अनुसार किये गये हैं तथा ये भारत में सभी बीमाकर्ताओं के लिए लागू हैं और केवल आरएनएलआईसी के लिए नहीं।
- उपर्युक्त पैरा 4(घ): एजेंसी पलायन विशिष्ट रूप से आरएनएलआईसी के लिए नहीं है।
- उपर्युक्त पैरा 4(ङ): प्रतिकूल समष्टि-आर्थिक कारक और वैश्विक परिवर्तन (मेल्ट डाउन) भी ऐसे कारक हैं जिन्होंने सामान्य रूप से अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, और केवल आरएनएलआईसी को नहीं।
- दिनांक 7 जून 2017 के ई-मेल द्वारा वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए निम्नलिखित के संबंध में बीमाकर्ता के नियुक्त बीमांकक से एक प्रमाणपत्र माँगा गयाः
- पालिसीधारक, विशेष रूप से पीएआर पालिसीधारक व्ययों के अत्यधिक बढ़ जाने से प्रभावित नहीं हैं।
- पालिसीधारकों के हित किसी भी समय प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं हुए हैं।
- उत्पाद विनियमों तथा फाइल एण्ड यूज़ शर्तों का अनुपालन किया गया है।
- अपेक्षित रूप में एक प्रमाणपत्र के स्थान पर नियुक्त बीमांकक (एए) ने दिनांक 3 जुलाई 2017 के पत्र द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ प्रस्तुतीकरण किया है कि समग्र आधार पर व्यय निर्धारित विनियामक सीमा से अधिक थे तथा सहभागी व्यवसाय द्वारा किये गये/सहभागी व्यवसाय को आबंटित व्यय निर्धारित विनियामक सीमा के अंदर थे। नियुक्त बीमांकक ने पीएआर-निधि के बारे में निम्नलिखित को निर्दिष्ट किया है।
“………आधिक्य के उच्चतर स्तर के लिए कारण मुख्य रूप से व्ययों का निम्नतर स्तर, विशेष रूप से अधिग्रहण व्ययों का निम्नतर स्तर है, जो वर्ष के दौरान उल्लेखनीय रूप से कम किया गया है। तथापि, अधिग्रहण व्यय तब भी कीमत-निर्धारण/लाभ निदर्शन में प्रयुक्त व्ययों से उच्चतर हैं। सहभागी निधि में उच्चतर अधिग्रहण व्ययों (कीमत-निर्धारण में प्रयुक्त व्ययों से उच्चतर) के अल्पकालिक निहितार्थ पीएआर पालिसीधारकों के लिए हो सकते हैं, परंतु दीर्घावधि में यह पालिसीधारक को प्रभावित नहीं कर सकेंगे......”
- बीमाकर्ता के प्रबंधन व्ययों के विवरण, बीमाकर्ता के स्पष्टीकरण और तदुपरांत नियुक्त बीमांकक के प्रस्तुतीकरणों की जाँच करने पर यह पाया गया कि बीमाकर्ता ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में बीमा नियम, 1939 के नियम 17डी के साथ पठित बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40बी का अनुपालन नहीं किया था। इसके अलावा, प्राधिकरण द्वारा की गई अपेक्षा के अनुसार नियुक्त बीमांकक से कोई प्रमाणीकरण नहीं था। इसके विपरीत, नियुक्त बीमांकक ने स्वीकार किया है कि अधिग्रहण व्यय तब भी कीमत-निर्धारण/लाभ निदर्शन में प्रयुक्त व्ययों से अधिक हैं और साथ ही निर्दिष्ट किया है कि पीएआर निधि अल्पावधि में प्रभावित हुई होगी।
- उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए, पत्र संदर्भ 446/12के/ईएमएल/एफएण्डए/2015-16/137/ 2018-19 दिनांक 30 नवंबर 2018 द्वारा एक कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किया गया।
- बीमाकर्ता ने पत्र संदर्भ 0/18-19/एलसीसीएस/10792 दिनांक 15 जनवरी 2019 द्वारा समय बढ़ाने की माँग करने के बाद अपनी उत्तर प्रस्तुत किया। बीमाकर्ता ने एससीएन के पैरा 6 से 8 तक में की गई टिप्पणियों के संबंध में कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया।
- बीमाकर्ता के द्वारा की गई अपेक्षानुसार 1 मई 2019 को वैयक्तिक सुनवाई का एक अवसर प्रदान किया गया। सुनवाई के दौरान, बीमाकर्ता से एससीएन के पैरा 6 से 8 तक के लिए प्रत्युत्तर प्रस्तुत करने के लिए कहा गया तथा बीमाकर्ता का प्रत्युत्तर आईआरडीएआई में 22 मई 2019 को प्राप्त किया गया।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के अपने पत्र के माध्यम से किये गये अपने प्रस्तुतीकरण में कहा है कि
………नये विनियम पर विचार करते हुए, व्यय का अंतराल उल्लेखनीय रूप में लगभग. 30% तक कम किया गया……
- बीमाकर्ता ने बीमा नियम, 1939 के नियम 17डी के साथ पठित बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40बी के अधीन ईओएम विवरणी फाइल करने का चयन किया है। पूर्ववर्ती उपबंधों अथवा वित्तीय वर्ष 2015-16 में ईओएम विनियमों का अनुसरण करने का विकल्प सुचारु रूप से परिवर्तन को सुसाध्य बनाते हुए किया गया एक संक्रमणकालीन उपबंध था। एक बार जब बीमाकर्ता ने धारा 40बी का चयन किया है, तब बीमाकर्ता उपबंधों के दो विभिन्न सेटों में से किसी भी एक सेट के उपबंध चयनात्मक तौर पर लागू नहीं कर सकता। अतः बीमाकर्ता का यह स्पष्टीकरण स्वीकार्य नहीं है।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के पत्र के माध्यम से किये गये अपने प्रस्तुतीकरण में कहा है
……….इस बात को ध्यान में रखना प्रासंगिक होगा कि इसी व्यवसाय माडल से आरएनएलआईसी ने वित्तीय वर्ष 12 तक भी प्रगति (ब्रेक) प्राप्त की है तथा वित्तीय वर्ष 12, वित्तीय वर्ष 13, वित्तीय वर्ष 14 और वित्तीय वर्ष 15 में वित्तीय लाभ घोषित किये हैं। नये विनियमों के अंतर्गत, विनियमों में परिवर्तनों के कारण अनुभव की गई कठिनाई और परिणामस्वरूप व्यवसाय माडल में किये गये समायोजनों के बाद; आरएनएलआईसी ने इसी एजेंसी माडल के साथ वित्तीय वर्ष 18 के लिए लाभ प्राप्त किये हैं। अतः उक्त व्यवसाय माडल की अर्थक्षमता पर प्रश्न करना सही नहीं है……….
- बीमाकर्ता का तर्क प्रश्न को गलत ढंग से समझने पर आधारित है। इस बात पर ध्यान दिया जाए कि उठाया गया मामला व्ययों को नियंत्रित करने में उक्त व्यवसाय माडल की असमर्थता के संबंध में है और उक्त व्यवसाय माडल की अर्थक्षमता के बारे में नहीं।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के अपने पत्र के माध्यम से किये गये अपने प्रस्तुतीकरण में कहा है
…………वित्तीय वर्ष 11 के दौरान अचानक हुए विनियामक परिवर्तनों तथा बाजार की स्थिति के कारण वित्तीय वर्ष 12 से एजेंसी द्वारा नियंत्रित व्यवसाय बैंकेश्यूरेंस व्यवसायों की तुलना में बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं….
……..यह ध्यान में रखना प्रासंगिक होगा कि पारंपरित उत्पादों की तुलना में यूलिप उत्पादों का विक्रय करना अधिक आसान था (क्योंकि ग्राहकों में वे अधिक लोकप्रिय थे)। अतः विनियमों में अचानक हुए परिवर्तन के कारण एजेंसी माध्यम से यूलिप उत्पादों का विक्रय करना आरएनएलआईसी के लिए कठिन हो गया।
………यूलिप विक्रय से पारंपरिक विक्रय में परिवर्तनों में समायोजन करने के अलावा, आरएनएलआईसी को पारंपरिक उत्पादों से प्रीमियम आय में वृद्धि करने के लिए गति को अधिक अनुकूल बनाना पड़ा और विपणन व्यय करने पड़े…
……..विनियामक परिवर्तनों ने भी कमीशन में कटौती के परिणामस्वरूप, परामर्शदाताओं के पलायन के कारण आरएऩएलआईसी के नये व्यवसाय को प्रभावित किया।……..परामर्शदाताओं के अव्यवहार्य कमीशनों के कारण 1 लाख से अधिक परामर्शदाताओं ने आरएनएलआईसी को छोड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप, यह अधिक संख्या में परामर्शदाताओं को किराये पर लेने के रूप में परिणत हुआ तथा इस कारण से कंपनी को भर्ती, प्रशिक्षण और गतिविधियों में अधिक व्यय करना पड़ा………
बाजार में गिरावट के कारण………उत्पाद की दर्शनीयता में वृद्धि करने के लिए विपणन में विपुल राशि व्यय करनी पड़ी………
वीआईपी (यूनिवर्सल लाइफ) उत्पादों (2010 में प्रारंभ किये गये) के लिए दिशानिर्देशों ने प्राधिकरण द्वारा यूनिवर्सल लाइफ उत्पादों की बिक्री पर रातों रात प्रतिबंध के लिए मार्ग प्रशस्त किया। यह प्रतिबंध आरएनएलआईसी के लिए दुहरे प्रहार के रूप में परिणत हुआ जो पहले से ही नये युलिप विनियमों के प्रतिकूल प्रभाव के अंतर्गत चक्कर खा रहा था।
…….बाजार में अन्य एजेंसी-संचालित व्यवसाय के खिलाड़ियों, जिन्होंने भी वर्ष 2014 से 2016 तक सीमा से अधिक व्यय किये थे, पर विनियामक परिवर्तनों का नकारात्मक प्रभाव……
- बीमाकर्ता ने तर्क किया है कि उक्त विनियमक परिवर्तनों और अत्यधिक एजेंसी पलायन दरों ने समग्र रूप में उद्योग को प्रभावित किया है तथा यह प्रभाव उनपर अधिक रहा है। उन्होंने आगे प्रस्तुतीकरण किया है कि बाजार में अन्य खिलाड़ी हैं जिनके व्यय वर्ष 2014-2016 में अत्यधिक बढ़ गये थे। यह ध्यान रखा जाए कि विनियामक कार्रवाई बीमाकर्ताओं पर उनके प्रस्तुतीकरणों पर विचार करने के बाद और उनके द्वारा प्रदर्शन करने पर कि पालिसीधारकों के हित प्रभावित नहीं होंगे, की गई है। आरएनएलआईसी के मामले में, पालिसीधारकों के हित के संरक्षण के संबंध में अपेक्षित प्रमाणीकरण बीमाकर्ता के नियुक्त बीमांकक (एए) द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के पत्र के द्वारा किये गये अपने प्रस्तुतीकरण में निम्नानुसार कहा है
…..आरएनएलआईसी ने विनियामक सीमाओँ के अंतर्गत पीएआर प्रभारित किया है……..आरएनएलआईसी पीएआर पालिसीधारकों का संरक्षण करने में सचेत रहा है क्योंकि पीएएआर खंड में ईओएम प्रतिशत वित्तीय वर्ष 2016 के लिए निर्धारित सीमाओँ के अंदर है।
इसके अलावा, वित्तीय विवरण तैयार करने के संबंध में आईआरडीएआई के दिनांक 11 दिसंबर 2013 के मास्टर परिपत्र के पैरा 2.5.1 के अनुसार परिचालन में 12 वर्ष पूरे करने के बाद कंपनी शेयरधारक निधि से पीएआर निधि में किसी भी राशि का अंशदान नहीं कर सकती।
- बीमाकर्ता के द्वारा उक्त मास्टर परिपत्र की व्याख्या गलत है। उक्त मास्टर परिपत्र की शर्त पालिसीधारकों हेतु बोनस की घोषणा करने के लिए पालिसीधारकों के खाते में कमी हेतु निधि उपलब्ध कराने के प्रयोजन से बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 49 के अंतर्गत है तथा उसका पाठ निम्नानुसार हैः
बीमा कंपनियों के वित्तीय विवरण तैयार करने संबंधी मास्टर परिपत्र से उद्धरणः
2.5.1 पालिसीधारकों को बोनस की घोषणा के लिए पूरी की जानेवाली शर्तें :
बोनस घोषित करने के लिए इच्छुक बीमाकर्ता को चाहिए कि वह, जहाँ सहभागी जीवन निधि कमी की स्थिति में है, निम्नानुसार प्राधिकरण द्वारा यथानिर्धारित शर्तें पूर्णतया पूरी करेः
- बीमाकर्ता पालिसीधारकों के खाते में संचित कमी को पूरा करेगा तथा सहभागी पालिसीधारकों को बोनस की घोषणा करने से पहले बोनस की लागत पूरी करने के लिए पर्याप्त आस्तियों का अंतरण भी करेगा। शेयरधारकों के खाते से इस प्रकार का अंतरण लाभ-हानि खाता शेष अथवा शेयरधारकों के खाते में आरक्षित निधियों में से और/या बीमाकर्ता की प्रदत्त पूँजी से आहरण करने के द्वारा किया जा सकता है। निहितार्थ से, इन परिस्थितियों के अंतर्गत बोनस की घोषणा के लिए विकल्प देनेवाले बीमाकर्ता के मामले में पालिसीधारकों के खाते में कोई कमी नहीं होगी।
- …………..
- …………..
- …………..
- ……………
- …………….
बोनस की घोषणा की अपेक्षा पूरी करने के प्रयोजनों के लिए उपर्युक्त प्रावधान बीमाकर्ताओं को केवल उस वर्ष से प्रारंभ करते हुए जिसमें जीवन बीमा व्यवसाय के परिचालन प्रारंभ किये गये हों, प्रथम बारह वित्तीय वर्षों के लिए ही उपलब्ध हैं। तदुपरांत यह प्रत्याशित है कि बोनस की घोषणा शेयरधारकों से अंशदान का सहारा लिये बिना जीवन निधि के अंदर अधिशेष द्वारा समर्थित होगी………
- उपर्युक्त शर्त `व्ययों के अत्यधिक बढ़ जाने’ के संबंध में निधि उपलब्ध कराने के लिए पालिसीधारकों के खाते में अंशदान करने से बीमाकर्ता के शेयरधारकों को नहीं रोकती।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के पत्र के द्वारा किये अपने प्रस्तुतीकरण में कहा है
……..आरएनएलआईसी ने विनियामक सीमाओं के अंतर्गत पीएआर प्रभारित किया है……. आरएनएलआईसी के लिए वर्ष 2015-16 में कंपनी स्तर पर व्ययों के अत्यधिक बढ़ जाने की स्थिति रही है। तथापि, आरएनएलआईसी पीएआर पालिसीधारकों का संरक्षण करने में सचेत रही है क्योंकि पीएआर खंड में ईओएम प्रतिशत वित्तीय वर्ष 2016 के लिए निर्धारित सीमाओँ के अंदर है।
उक्त प्रस्तुतीकरण अभिलेखबद्ध किये गये हैं।
- बीमाकर्ता ने दिनांक 15 जनवरी 2019 के पत्र के द्वारा किये गये अपने प्रस्तुतीकरण में कहा है
बोनस या तो विगत वर्षों की तुलना में बढ़ाया गया है या पिछले वित्तीय वर्ष से बनाये रखा गया है तथा पीएआर निधि के एफएफए में उल्लेखनीय रूप में वृद्धि की गई है….. कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2017-18 और वित्तीय वर्ष 2018-19 में भी बोनस की दरें बढ़ाई हैं। इस प्रकार, वर्षों में बोनस दरें बढ़ाने तथा एफएफए में उल्लेखनीय वृद्धि करने के द्वारा पालिसीधारकों के हितों का संरक्षण किया गया है।
व्यय उत्पादों के कीमत-निर्धारण में प्रयुक्त व्ययों से अधिक थे तथा ये अधिग्रहण व्ययों से संबंधित थे जो पीएआर नये व्यवसाय से संबंधित हैँ। हम प्राधिकरण को सूचित करना चाहते हैं कि अंकित समस्त नया व्यवसाय वित्तीय वर्ष 2014-15 के बाद प्रारंभ किये गये उत्पादों से था।………..अधिग्रहण व्ययों की अत्यधिकता ने इन उत्पादों की बोनस घोषणा को प्रभावित नहीं किया है। इस प्रकार, पालिसीधारकों का हित नये सिरे से प्रारंभ की गई औऱ बेची गई पालिसियों के लिए संरक्षित रहा है……….
………..तत्कालीन नियुक्त बीमांकक ने उक्त प्रत्युत्तर में पूछे गये प्रश्नों के लिए एक विस्तृत प्रत्युत्तर दिया था। उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरणों में विभिन्न मानदंडों का समाधान किया जिन पर पीएआर निधि का विश्लेषण किया जाना चाहिए, बोनस की घोषणा के लिए अपनाई गई पद्धति का समाधान किया तथा यह दर्शाया कि पालिसीधारकों के हित प्रभावित नहीं हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि उच्चतर अधिग्रहण व्ययों के अल्पकालिक निहितार्थ हो सकते हैं। इस प्रकार का अल्पकालिक निहितार्थ उदाहरण के लिए निम्नतर एफएफए हो सकता है, जो अल्प अवधि में निवेश की स्वतंत्रता अथवा उच्चतर बोनस की घोषणा को सीमित कर सकता है। तथापि, हमारी बही के मामले में यह गारंटीकृत लाभ अथवा बोनस की घोषणा में कटौती के रूप में परिणत नहीं हुआ है।
- पालिसीधारकों के हित के संरक्षण तथा उत्पाद संबंधी विनियमों और एफएण्डयू दिशानिर्देशों के अनुपालन के संबंध में बीमाकर्ता के नियुक्त बीमांकक से `प्रमाणपत्र’ की माँग बार-बार करने के बावजूद, बीमाकर्ता दावा करता है कि किये गये प्रश्नों का एक विस्तृत प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया गया है। अब तक किये गये उनके प्रस्तुतीकरणों में बीमाकर्ता ने अपेक्षित प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराया है, परंतु यह दावा करता है कि जबकि अधिग्रहण व्यय उत्पादों के कीमत-निर्धारण में प्रयुक्त व्ययों से अधिक थे, उन्होंने नये प्रारंभ किये गये और बेचे गये उत्पादों की बोनस घोषणा को प्रभावित नहीं किया है। वर्तमान पालिसीधारकों के संरक्षण के संबंध में कोई पुष्टि नहीं है।
- बीमाकर्ता दावा करता है कि गारंटीकृत लाभ अथवा बोनस की घोषणा में कोई कटौती नहीं रही है, परंतु उसने अल्पकालिक निहितार्थों से इनकार नहीं किया है जो `निम्नतर एफएफए है जो अल्प अवधि में निवेश की स्वतंत्रता अथवा उच्चतर बोनस की घोषणा को सीमित कर सकते हैं’।
निर्णय
- बीमाकर्ता ने न तो नियुक्त बीमांकक से प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया है और न ही दर्शाया है कि पालिसीधारकों का हित निर्धारित सीमाओं की तुलना में व्ययों की अधिकता के कारण प्रभावित नहीं हुआ है। यह पाया गया है कि बीमाकर्ता ने प्रबंधन के व्ययों के लिए निर्धारित सीमाओँ का अनुपालन न करते हुए बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40बी के उपबंधों का उल्लंघन किया है। बीमाकर्ता को इसके द्वारा बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64के(2) के अधीन भविष्य में प्रबंधन के व्ययों का अनुपालन करने की सूचना के साथ चेतावनी दी जाती है।
- बीमाकर्ता को आगे यह भी सूचित किया जाता है कि सात वर्ष की अवधि के अंदर यदि दो धारा 64(के)(2) के अधीन दो चेतावनियाँ दी जाती हैं और बीमाकर्ता के द्वारा उनकी अवज्ञा की जाती है, तो प्राधिकरण बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64के (3) के अनुसरण में जाँच और मूल्यांकन करवा सकता है।
- चूँकि पीएआर खंड में किये गये व्यय अनुमतियोग्य सीमाओं के अंदर हैं, अतः व्ययों की अधिकता को शेयरधारकों की निर्धारित सीमाओँ में से नामे डालने के लिए जोर नहीं दिया जाता है, क्योंकि अन्य खंडों में लाभ अथवा हानियाँ किसी भी प्रकार से शेयरधारकों से संबंधित हैं।
- यदि बीमाकर्ता इस आदेश में निहित किसी भी बात से असंतुष्ट महसूस करता है, तो बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 110 के अनुसार प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) के समक्ष एक अपील प्रस्तुत की जा सकती है।
अध्यक्ष
स्थानः हैदराबाद
दिनांकः 16 जुलाई 2019