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Title: अंतिम आदेश
Reference No.: आईआरडीए/जीवन/ओआरडी/विविध/188/11/2018
Date: 15/11/2018
मेसर्स एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में आदेश

अंतिम आदेश

संदर्भ सं.: आईआरडीए/जीवन/ओआरडी/विविध/188/11/2018           दिनांकः 15.11.2018

मेसर्स एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में आदेश

निम्नलिखित के आधार पर

  1. प्राधिकरण के द्वारा नियुक्त न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा जारी किया गया कारण बताओ नोटिस (इसमें इसके बाद एससीएन के रूप में उल्लिखित) दिनांक 5 अप्रैल 2016 ।
  2. उक्त एससीएन के लिए मेसर्स एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (पूर्व की आईएनजी वैश्य लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. (इसमें इसके बाद एक्साइड लाइफ के रूप में उल्लिखित) का उत्तर दिनांक 5 मई 2016 ।
  3. भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, 7वीं मंजिल, युनाइटेड इंडिया बिल्डिंग, बशीरबाग, हैदराबाद के कार्यालय में 17 जून 2016 को आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान न्यायनिर्णयन अधिकारी के समक्ष एक्साइड लाइफ द्वारा किये गये प्रस्तुतीकरण।
  4. न्यायनिर्णयन अधिकारी की जाँच रिपोर्ट दिनांक 30.10.2017 ।
  5. उक्त जाँच रिपोर्ट के लिए एक्साइड लाइफ का उत्तर पत्र दिनांक 10 नवंबर 2017।
  6. बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 102 को लागू करने की बात सूचित करते हुए तथा इस विषय में उन्हें वैयक्तिक सुनवाई का एक अवसर देते हुए एक्साइड लाइफ को प्राधिकरण का पत्र दिनांक 30 जुलाई 2018 ।
  7. दिनांक 14 अगस्त 2018 के अपने पत्र में तथा बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट, नानकरामगूडा, हैदराबाद के कार्यालय में डा. सुभाष चन्द्र खुंटिआ, अध्यक्ष, आईआरडीएआई की अध्यक्षता में 30 अगस्त 2018 को अपराह्न 3.30 बजे आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान एक्साइड लाइफ द्वारा किये गये प्रस्तुतीकरण।  

पृष्ठभूमिः

  1. परिपत्र सं. आईआरडीए/एफएण्डए/सीआईआर/डेटा/066/03/2012 दिनांक 2 मार्च 2012 के अनुसार अपने पत्र सं. ईएक्सएल/आरईजीएल/42/2014-15 दिनांक 21 मई 2014 के माध्यम से एक्साइड लाइफ के द्वारा प्रस्तुत किये गये डेटा की जाँच करने पर यह पाया गया कि वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान एक्साइड लाइफ ने कारपोरेट एजेंटों के लाइसेंसीकरण संबंधी दिशानिर्देश दिनांक 14.7.2015  (इसमें इसके बाद कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देश के रूप में उल्लिखित) के खंड 21 एवं बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए का उल्लंघन करते हुए अपने कारपोरेट एजेंट मेसर्स आईएनजी वैश्य बैंक लि., जो अब कोटक महिन्द्रा बैंक के साथ विलयित है (इसमें इसके बाद कारपोरेट एजेंट/बैंक के रूप में उल्लिखित) को बुनियादी सुविधा प्रभारों के लिए 24 करोड़ रुपये एवं सभाभवन (आडिटोरियम) प्रभार, कार पार्किंग, कारपोरेट कार्यालय का किराया और कारपोरेट कार्यालय के लिए उपयोगिता प्रभारों जैसे शीर्षों के अंतर्गत 6.46 करोड़ रुपये (कुल मिलाकर 30.46 करोड़ रुपये) का भुगतान किया था, क्योंकि यह राशि बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए के अंतर्गत निर्धारित कमीशन संबंधी व्यय की सीमा से अधिक है।  
  2. बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40 के संभव उल्लंघन का जहाँ तक संबंध है, उक्त मामला समय-समय पर यथासंशोधित बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 105(सी) के उपबंधों के अनुसार प्राधिकरण द्वारा नियुक्त किये गये न्यायनिर्णयन अधिकारी को भेजा गया। उक्त न्यायनिर्णयन अधिकारी ने एक्साइड लाइफ को बीमा (न्यायनिर्णयन अधिकारी के द्वारा जाँच आयोजित करने के लिए क्रियाविधि) नियम, 2016 (इसमें इसके बाद एओ नियम के रूप में उल्लिखित) के नियम 4 के अधीन पत्र सं. आईआरडीएआई/एडीजे/एक्साइडलाइफ/001/2016-17/ओटीडब्ल्यू/441 दिनांक 5 अप्रैल 2016 के द्वारा एक कारण बताओ नोटिस जारी किया।
  3. एक्साइड लाइफ ने उक्त एससीएन के लिए अपने पत्र दिनांक 5 मई 2016 के द्वारा अपना प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया तथा एक्साइड लाइफ के अनुरोध के अनुसार न्यायनिर्णयन अधिकारी ने 17 जून 2016 को उक्त विषय में एक वैयक्तिक सुनवाई के लिए अवसर प्रदान किया।
  4. न्यायनिर्णयन अधिकारी ने प्राधिकरण को सिफारिशों के साथ जाँच रिपोर्ट 30.10.2017 को प्रस्तुत की। उक्त रिपोर्ट प्राधिकरण द्वारा एक्साइड लाइफ को 9 नवंबर 2017 को प्रेषित की गई। अध्यक्ष, आईआरडीएआई द्वारा वैयक्तिक सुनवाई के लिए एक अवसर भी प्रदान किया गया। एक्साइड लाइफ ने दिनांक 10 नवंबर 2017 के अपने पत्र के द्वारा बताया कि न्यायनिर्णयन अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि पालिसीधारकों के द्वारा कोई हानि नहीं उठाई गई, अतः उक्त विचलन को माफ करने का अनुरोध किया तथा बताया कि न्यायनिर्णयन अधिकारी की रिपोर्ट पर उन्हें आगे कोई प्रस्तुतीकरण नहीं करना है। बीमाकर्ता ने वैयक्तिक सुनवाई के अवसर का उपयोग नहीं किया।
  5. प्राधिकरण ने एक्साइड लाइफ द्वारा कारपोरेट एजेंटों को किये गये भुगतानों के संबंध में पिछले सभी उल्लंघनों का उल्लेख करते हुए तथा यह सूचित करते हुए कि बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 102 के उपबंधों को लागू करना बीमा अधिनियम की धारा 40(3) के दंडात्मक उपबंधों के रूप में माना जाता है जो कि बीमा अधिनियम की धारा 102 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना है, एक और पत्र दिनांक 30 जुलाई 2018 जारी किया तथा उक्त विषय में उन्हें वैयक्तिक सुनवाई के एक और अवसर की अनुमति दी गई।     
  6. एक्साइड लाइफ ने दिनांक 14 अगस्त 2018 के अपने पत्र के द्वारा 30 जुलाई 2018 के पत्र के लिए अपना प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया तथा वैयक्तिक सुनवाई के लिए भी विकल्प दिया जो अधोहस्ताक्षरकर्ता द्वारा 30 अगस्त 2018 को आईआरडीएआई कार्यालय, हैदराबाद में आयोजित की गई। श्री क्षितिज जैन, सीईओ और एमडी, श्री अनिल कुमार सी, सीएफओ और सुश्री अर्पिता सेन, सीसीओ, एक्साइड लाइफ उक्त सुनवाई में उपस्थित थे। प्राधिकरण की ओर से श्री वी. जयंत कुमार, मुख्य महाप्रबंधक (जीवन), श्री जी.आर.सूर्यकुमार, महाप्रबंधक (अध्यक्ष का ईए), श्री गौतम कुमार, उप महाप्रबंधक (जीवन-समन्वय), सुश्री बी. पद्मजा, उप महाप्रबंधक (एफएण्डए-जीवन) और सुश्री बी. अरुणा, प्रबंधक (जीवन-आरए) भी उपस्थित थे।
  7. एक्साइड लाइफ द्वारा दिनांक 14 अगस्त 2018 के अपने पत्र में एवं 30 अगस्त 2018 को आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान किये गये प्रस्तुतीकरणों पर विचार किया गया।
  8. एससीएन दिनांक 5 अप्रैल 2016 में उल्लिखित आरोप, न्यायनिर्णयन अधिकारी की सिफारिशें, एससीएन और प्राधिकरण के दिनांक 30 जुलाई 2018 के पत्र के लिए एक्साइड लाइफ द्वारा किये गये प्रस्तुतीकरण एवं 30 अगस्त 2018 को आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान किये गये प्रस्तुतीकरण निम्नानुसार हैं :
  1. न्यायनिर्णयन अधिकारी द्वारा दिनांक 5 अप्रैल 2016 के एससीएन में लगाये गये आरोप

परिपत्र सं. आईआरडीए/एफएण्डआई/सीआईआर/एफएण्डए/066/03/2012 दिनांक 2 मार्च 2012 के प्रावधानों के अंतर्गत एक्साइड लाइफ ने अपने पत्र दिनांक 21 मई 2014 के अनुसार वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 31बी के अधीन एजेंटों और मध्यवर्तियों को किये गये भुगतानों के संबंध में विवरण प्रस्तुत किया। एक्साइड लाइफ द्वारा प्रस्तुत सूचना की जाँच करने पर यह पाया गया कि एक्साइड लाइफ द्वारा कारपोरेट एजेंट आईँएनजी वैश्य बैंक को बुनियादी सुविधा प्रभारों के लिए वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान 30.46 करोड़ रुपये की राशि का कमीशन से अधिक भुगतान किया गया।

  •  कि कारपोरेट एजेंट को एक्साइड लाइफ द्वारा बुनियादी सुविधा प्रभारों के लिए 30.46 करोड़ रुपये का भुगतान कारपोरेट एजेंटों के लाइसेंसीकरण संबंधी दिशानिर्देश, 2005 के खंड 21 का घोर उल्लंघन है।
  • कि कारपोरेट एजेंट को एक्साइड लाइफ द्वारा 30.46 करोड़ रुपये का उक्त भुगतान बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए का घोर उल्लंघन करते हुए किया गया क्योंकि यह बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए द्वारा निर्धारित कमीशन संबंधी व्यय की सीमा से अधिक है।

  1. कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देश के खंड 21 और बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए के उपबंधः

कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों का खंड 21:

   “………. बीमाकर्ता कारपोरेट एजेंट को अनुमत एजेंसी कमीशन को छोड़कर कोई भी राशि अदा नहीं करेगा, चाहे वह प्रशासन प्रभार के रूप में हो अथवा व्ययों की प्रतिपूर्ति के रूप में अथवा लाभ कमीशन अथवा किसी भी अन्य रूप में हो। यह बीमाकर्ता को कारपोरेट एजेंट के साथ सह-ब्रांडयुक्त विक्रय साहित्य के व्ययों की साझेदारी करने से नहीं रोकता। तथापि, ऐसे व्यय उचित होने चाहिए तथा इन्हें किसी भी रूप में विक्रय में सफलता अथवा कारपोरेट एजेंट द्वारा अर्जित प्रीमियम के साथ संबद्ध नहीं किया जाना चाहिए……..

बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए (1):

बीमा विधि (संशोधन) अधिनियम, 2015 से पहले, (अवधि जिसके लिए प्रस्तुत एससीएन लागू है), उक्त धारा 40ए बीमाकर्ताओं द्वारा देय और बीमी एजेंटों द्वारा प्राप्य कमीशन संबंधी व्यय अथवा किसी भी रूप में पारिश्रमिक के संबंध में उच्चतम सीमाएँ निर्धारित करती है।

  1. एससीएन के लिए एक्साइड लाइफ के प्रस्तुतीकरणः
  • 30.46 करोड़ रुपये का उक्त भुगतान आईएनजी वैश्य बैंक (अब कोटक बैंक) के साथ कारपोरेट एजेंसी की तालमेल व्यवस्था से बिलकुल संबंधित नहीं था एवं इस कारण से वह कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के दायरे में नहीं आता।
  • कारपोरेट एजेंट को कुल भुगतान वित्तीय वर्ष 2013-14 में 73.72 करोड़ रुपये था। इसमें से 43.26 करोड़ रुपये की राशि कमीशन से संबंधित थी। 30.46 करोड़ रुपये की शेष राशि में से 24 करोड़ रुपये की राशि बुनियादी सुविधा प्रभारों के लिए है तथा 6.46 करोड़ रुपये आडिटोरियम प्रभार, कार पार्किंग, कारपोरेट कार्यालय का किराया, कारपोरेट कार्यालय के लिए उपयोगिता प्रभार, आदि के लिए थे जो भू-स्वामी के रूप में कारपोरेट एजेंट के साथ स्वतंत्र व्यवस्थाएँ थीं तथा कारपोरेट एजेंसी करार के अंतर्गत बैंक द्वारा किये गये बीमा व्यवसाय की अपेक्षा के साथ इनकी कोई सहबद्धता नहीं थी। अतः इसे कमीशन के रूप में श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता और तदनुसार बीमा अधिनियम की धारा 40ए का उल्लंघन होते हुए इस पर विचार नहीं किया जा सकता।

  1. न्यायनिर्णयन अधिकारी की सिफारिश

इस बात की जाँच करते हुए कि क्या कारपोरेट एजेंट को एक्साइड लाइफ के द्वारा कमीशन से अधिक, बुनियादी सुविधा प्रभारों का भुगतान बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए और कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के उपबंधों के अनुपालन में है अथवा नहीं, न्यायनिर्णयन अधिकारी ने उल्लेख किया कि उक्त खंड 21 स्पष्ट रूप से बीमाकर्ता को अनुमत एजेंसी कमीशन को छोड़कर किसी भी राशि का भुगतान, चाहे प्रशासन प्रभारों के रूप में हो अथवा व्ययों की प्रतिपूर्ति के रूप में अथवा लाभ कमीशन अथवा किसी भी रूप में कारपोरेट एजेंट को करने से निषेध करता है। अतः कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों में किन्हीं भी अन्य प्रभारों की अनुमति नहीं दी गई है तथा निम्नानुसार सिफारिश की गईः 

बीमा अधिनियम, 1938 की 105डी के अंतर्गत बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 105सी के अधीन मौद्रिक दंड की मात्रा की सिफारिश करते समय, न्यायनिर्णयन अधिकारी निम्नलिखित कारकों को उचित महत्व देगा, अर्थात् :

  •  चूक के परिणाम के रूप में, जहाँ भी परिमाणनयोग्य हो, अनुपातहीन लाभ अथवा अनुचित लाभ की मात्रा निर्धारित की जाए
  • चूक के परिणामस्वरूप पालिसीधारकों को पहुँची हानि की राशि तथा
  •   चूक का आवृत्तिमूलक स्वरूप

  1. यह नोट किया गया है कि बैंक, बीमाकर्ता का प्रवर्तक होते हुए, बुनियादी सुविधा प्रदान की, क्योंकि बैंक के पास बीमाकर्ता की तुलना में अधिक अखिल भारतीय उपस्थिति है।  यह आरोप नहीं है कि दोनों पक्षकारों द्वारा किये गये करार के लिए सुरक्षात्मक दूरी (आर्म्स लेंग्थ डिस्टैंस) नहीं रखी गई थी। अतः दोनों में से किसी भी पक्षकार को अनुपातहीन लाभ नहीं पाया गया है। चूँकि कोई अनुपातहीन लाभ नहीं था, अतः चूक के परिणामस्वरूप पालिसीधारकों को हुई हानि का पता नहीं लगाया जा सकता।
  2. चूक के आवृत्तिमूलक स्वरूप के संबंध में,
  •  बीमाकर्ता पर पूर्व के आईएनजी वैश्य बैंक को विज्ञापनों के लिए विपणन समर्थन लागत की प्रतिपूर्ति के लिए वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2010-11 के लिए दिनांक 30.7.2012 के आदेश के
    अनुसार 10 लाख रुपये का अर्थ-दंड लगाया गया।  यह नोट किया गया कि उपर्युक्त राशि पात्र कमीशन से अधिक थी।
  • बीमाकर्ता पर अपने कारपोरेट एजेंटों को अनुमतियोग्य सीमाओं से अधिक   किये गये भुगतान के लिए आदेश दिनांक 11.12.2013 के अनुसार 1,00,000/- (एक लाख रुपये) का अर्थ-दंड लगाया गया।
  •  बीमाकर्ता इसी प्रकार के उल्लंघन के लिए अर्थ-दंड लगाने के बावजूद धारा 31बी का उल्लंघन करता रहा है तथा उक्त चूक आवृत्तिमूलक चूक के स्वरूप के तौर पर मानने योग्य है।
  •  उपर्युक्त पर विचार करते हुए, मैं बीमाकर्ता पर बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40 सी(3) के साथ पठित धारा 105 सी के अधीन एक लाख रुपये के अर्थ-दंड की सिफारिश करता हूँ।

(V) अपने पत्र दिनांक 14 अगस्त 2018 में तथा 30.8.2018 को आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान एक्साइड लाइफ के प्रस्तुतीकरणः

(क) उक्त भुगतान बुनियादी सुविधा प्रभारों के स्वरूप के होते हुए, व्यवसाय के सामान्य क्रम में किये गये तथा एक असंबद्ध स्वतंत्र संविदा के अंतर्गत निष्पादित किये गये और उनपर 2005 के आईआरडीएआई कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के उपबंध लागू नहीं होते।

(ख) उपर्युक्त भुगतान कमीशन के रूप में श्रेणीबद्ध नहीं किये जा सकते तथा तदनुसार इनके कारण पूर्व के आईआरडीएआई कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देश 2005 और/ या बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए के उपबंधों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

(ग) बुनियादी सुविधाओं के लिए भुगतान आईएनजी वैश्य बैंक के साथ बुनियादी सुविधा करार दिनांक 25 मई 2012 के अनुसार एक नियत लागत आधार पर थे जहाँ एक्साइड लाइफ के कर्मचारी 50,000/- रुपये प्रति शाखा प्रति माह की नियत लागत पर अखिल भारतीय आधार पर बैंक की बुनियादी सुविधा का उपयोग करेंगे। यह व्यवस्था सारे भारत में बहुविध वैयक्तिक करार करने की तुलना में वाणिज्यिक तौर पर कम खर्चीली के रूप में देखी गई।

(घ) उक्त भुगतान 2012-13 और 2013-14 की अवधियों से संबंधित हैं और ये बुनियादी सुविधाओं के लिए एक अलग करार के अधीन हैं तथा ये आवृत्तिमूलक स्वरूप के उल्लंघन नहीं हैं। अब इस बैंक (अब कोटक बैंक) के साथ कारपोरेट एजेंसी की कोई तालमेल व्यवस्था नहीं है तथा 2014 में उक्त करार को निरस्त किया गया।

(9) प्रत्युत्तर का विश्लेषणः 

कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के अनुसार, बीमाकर्ता कारपोरेट एजेंट को सह-ब्रांडिंग विक्रय साहित्य के लिए उचित व्यय के अलावा अनुमत एजेंसी कमीशन को छोड़कर कोई भी अन्य राशि का भुगतान नहीं करेगा, चाहे वह प्रशासन प्रभार के रूप में हो अथवा व्ययों की प्रतिपूर्ति अथवा लाभ कमीशन अथवा किसी भी अन्य रूप में क्यों न हो।

इस प्रस्तुतीकरण के संबंध में कि उक्त भुगतान आवृत्तिमूलक स्वरूप के नहीं हैं, यह पाया गया है कि उक्त बैंक और एक्साइड लाइफ के बीच किया गया दिनांक 27 मार्च 2012 का करार `सुविधाओं और लागत के लिए है तथा उक्त करार का अनुबंध ए सुविधाओं के स्थूल स्वरूप को दर्शाता है जो बैंक द्वारा एक्साइड लाइफ के साथ किये गये करार में उपलब्ध कराई जाएँगी। उक्त भुगतान समय-समय पर बीमाकर्ता (एक्साइड लाइफ) द्वारा निर्धारित सेवा मानकों और मानदंडों के अनुसार पालिसीधारकों की चिंताओँ अथवा पूछताछ से संबंधित सेवा करने और/या ऐसी चिंताएँ और पूछताछ बीमाकर्ता को पुनःप्रेषित करने में सहायता करने की सुविधा के लिए किये गये हैं जैसा कि उपर्युक्त करार में कहा गया है तथा ये केवल बुनियादी सुविधा की लागतों से संबंधित नहीं हैं, जैसा कि एक्साइड लाइफ द्वारा दावा किया गया है। इस संबंध में यह पाया गया है कि जीवन बीमाकर्ता के कारपोरेट एजेंट के रूप में बैंक के पास जीवन बीमाकर्ता से किसी भुगतान की अपेक्षा किये बिना अपने पालिसीधारकों से प्राप्त पूछताछ पर कार्रवाई करने का दायित्व है। उक्त करार में बैंक शाखा भवनों पर एक्साइड लाइफ विज्ञापन दर्शाने के लिए लागत भी निहित है जो 50,000/- रुपये प्रति बैंक शाखा स्थान से अधिक नहीं होगी, जब तक उक्त पक्षकारों के बीच पारस्परिक तौर पर सहमति-प्राप्त न हो। यह देखा गया है कि कारपोरेट एजेंट के रूप में बैंक इन विज्ञापनों का एक लाभार्थी है। इसके अतिरिक्त, बैंक बुनियादी सुविधाएँ देने का व्यवसाय नहीं कर रहा है। इस प्रकार, उक्त प्रस्तुतीकरण कि ये संविदाएँ और भुगतान कारपोरेट एजेंट की तालमेल व्यवस्था से संबंधित नहीं हैं, स्वीकार नहीं किये जाते और यह समझा जाता है कि प्रश्नगत भुगतान कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 का उल्लंघन करते हुए किये गये हैं।

इसके अलावा, दिनांक 30.07.2012 के आदेश के द्वारा पहले ही लगाये गये अर्थ-दंड इसी प्रकार के उल्लंघनों के लिए थे अर्थात् प्राथमिक रूप से कंपनी की ब्रांड छवि के निर्माण के उद्देश्य से दिये गये विज्ञापनों के लिए एवं विक्रय कियोस्क स्थापित करने तथा बैंक के विभिन्न स्थानों पर रोड शो और ग्राहक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए वित्तीय वर्ष 2009 और 2010-11 में आईएनजी वैश्य बैंक को की गई प्रतिपूर्तियों के लिए थे।

दिनांक 2.3.2012 के अंतर्गत फाइल की गई रिपोर्टों की समीक्षा के आधार पर प्राधिकरण के आदेश सं. आईआरडीए/एफएण्डआई/ओआरडी/464.1/9/एफएण्डए/आरडीएल-31बी/2011-12/181 दिनांक 11/12/2013 के अनुसार वित्तीय वर्ष 2011-12 के दौरान विपणन अनुसंधान कार्यकलापों के शीर्षों के अंतर्गत कारपोरेट एजेंटों/ दलालों को अनुमत सीमाओं से अधिक किये गये भुगतानों के लिए एक्साइड लाइफ को एक लाख रुपये की राशि का अर्थ-दंड दिया गया। 

एक्साइड लाइफ को वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान बुनियादी सुविधा प्रभारों के शीर्ष के अंतर्गत आईएनजी वैश्य बैंक को किये गये भुगतानों के लिए भी आदेश सं. आईआरडीए/ एफएण्डए/ ओआरडी/ विविध/185/11/2018 दिनांक 14.11.2018 के अनुसार दो लाख रुपये की राशि के लिए अर्थ-दंड दिया गया।

उपर्युक्त से यह स्पष्ट है कि एक्साइड लाइफ द्वारा आईआरडीएआई कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देश, 2005 के खंड 21 का उल्लंघन आवृत्तिमूलक स्वरूप का है। साथ ही, यह भी देखा गया है कि अधिक धनराशि के ये बड़े भुगतान बार-बार किये जा रहे हैं जबकि एक्साइड लाइफ संबंधित वर्षों में सांविधिक रूप से अधिदेशात्मक की गई प्रबंधन व्ययों की सीमाओं का पालन नहीं कर सका है।

इस प्रकार यह माना जाता है कि एक्साइड लाइफ द्वारा वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान अपने कारपोरेट एजेंट को बुनियादी सुविधा प्रभारों के लिए किया गया 24 करोड़ रुपये का भुगतान कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के उपर्युक्त उपबंधों का उल्लंघन करते हुए किया गया है।

बीमा अधिनियम की धारा 40(3) के साथ पठित धारा 105सी के उपबंध बीमा अधिनियम की धारा 102 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव के बिना हैं।

(10) निर्णयः

उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए, बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 102 (बी) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 2013-14 के दौरान बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 40ए के साथ पठित कारपोरेट एजेंसी दिशानिर्देशों के खंड 21 के उपबंधों का बारंबार उल्लंघन करने के लिए इसके द्वारा 3 लाख रुपये (तीन लाख रुपये) का अर्थ-दंड लगाया जाता है। एक्साइड लाइफ को निदेश दिया जाता है कि वे इस आदेश को अपने बोर्ड की लेखा-परीक्षा समिति की अगली बैठक में तथा एक्साइड लाइफ की अगली बोर्ड बैठक में उनके समक्ष प्रस्तुत करें ताकि बोर्ड उक्त उल्लंघन को ध्यान में रख सके तथा भविष्य में इस प्रकार के उल्लंघनों से बचने के लिए निवारक कार्रवाई कर सके। प्राधिकरण को उन बैठकों के कार्यवृत्त की प्रतियाँ उपलब्ध कराई जाएँ। 

11. 3 लाख रुपये (तीन लाख रुपये मात्र) के अर्थ-दंड की उक्त राशि एक्साइड लाइफ द्वारा एनईएफटी/आरटीजीएस के माध्यम से इस आदेश के निर्गम की तारीख से 45 दिन की अवधि के अंदर शेयरधारकों के खाते में नामे डालकर विप्रेषित की जाएगी। विप्रेषण की सूचना श्री वी. जयंत कुमार, मुख्य महाप्रबंधक (जीवन) को भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, सर्वे सं. 115/1, फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट, नानकरामगूडा, हैदराबाद-500032, ई-मेल आईडी life@irda.gov.in के पते पर भेजी जाए।

12. यदि एक्साइड लाइफ इस आदेश में निहित किसी भी निर्णय से असंतुष्ट है, तो बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 110 के अनुसार एक अपील प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) को प्रस्तुत की जा सकती है।

स्थानः हैदराबाद

दिनांकः 15 नवंबर 2018

(डा. सुभाष सी. खुंटिआ)

अध्यक्ष

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    Order in the matter of M_s Exide Life Insurance Company Ltd, Nov 2018.pdf

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