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Title: आदेश
Reference No.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/ओएनएस/198/12/2018   
Date: 05/12/2018
मेसर्स एचडीएफसी एरगो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड – मोटर दावों का निपटान के मामले में

संदर्भ सं.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/ओएनएस/198/12/2018                                           दिनांकः 05.12.2018

मेसर्स एचडीएफसी एरगो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेडमोटर दावों का निपटान के मामले में

मेसर्स एचडीएफसी एरगो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को जारी किये गये दिनांक 6 अप्रैल 2017 के कारण बताओ नोटिस के लिए उत्तर एवं प्राधिकरण के कार्यालय, तीसरी मंजिल, परिश्रम भवन, बशीरबाग, हैदराबाद में 12 जून 2017 को श्री पी. जे. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इसमें इसके बाद आईआरडीएआई/प्राधिकरण के रूप में उल्लिखित) की अध्यक्षता में आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान किये गये उनके प्रस्तुतीकरणों के आधार पर निम्नलिखित वक्तव्य दिया जा रहा हैः

  1. पृष्ठभूमि

मोटर वाहन कुल हानि / चोरी की स्थिति में बीमित घोषित मूल्य (इसमें इसके बाद आईडीवी के रूप में उल्लिखित) से कम राशियों का निपटान करनेवाले साधारण बीमाकर्ताओं से संबंधित कुछ शिकायतें प्राप्त होने पर प्राधिकरण ने साधारण बीमाकर्ताओं से मोटर दावों से संबंधित डेटा माँगा था।

एच़डीएफसी एरगो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (इसमें इसके बाद बीमाकर्ता/कंपनी के रूप में उल्लिखित) से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने पर प्राधिकरण ने मोटर (निजी क्षति) कुल हानि/चोरी के मामलों के निपटान के संबंध में 29 अक्तूबर 2012 से 7 नवंबर 2012 तक बीमाकर्ता का संकेंद्रित स्थान पर (आनसाइट) निरीक्षण संचालित किया था। उक्त निरीक्षण में वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2010-11 के दौरान बीमाकर्ता द्वारा किये गये मोटर दावों के निपटान को सम्मिलित किया गया।

प्राधिकरण ने निरीक्षण के निष्कर्ष दिनांक 28 जून 2016 द्वारा सूचित किये। बीमाकर्ता द्वारा अपने पत्र 26 जुलाई 2016 के अनुसार किये गये प्रस्तुतीकरणों की जाँच करने के बाद प्राधिकरण ने दिनांक 6 अप्रैल 2017 का `कारण बताओ नोटिसजारी किया जिसका उत्तर बीमाकर्ता द्वारा दिनांक 26 अप्रैल 2017 के अपने पत्र के अनुसार दिया गया। जैसा कि उसमें अनुरोध किया गया, बीमाकर्ता को एक वैयक्तिक सुनवाई का अवसर 12 जून 2017 को दिया गया।  श्री रीतेश कुमार, प्रबंध निदेशक एवं सीईओ, श्री मुकेश कुमार, कार्यकारी निदेशक, श्री समीर एच. शाह, कार्यकारी प्रबंधन का सदस्य एवं सीईओ तथा श्री अनुराग रस्तोगी, मुख्य बीमांकक और प्रधान (खुदरा जोखिम-अंकन औऱ दावे) बीमाकर्ता की ओर से उक्त सुनवाई में उपस्थित थे। प्राधिकरण की ओर से श्री पी. जे. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), श्री के. महीपाल रेड्डी, उप महाप्रबंधक (गैर-जीवन) और श्री पी. नरसिंहा रेड्डी, विशेष कार्य अधिकारी उक्त वैयक्तिक सुनवाई में उपस्थित थे।

  1. आरोप

आरोप सं. 1:   

मोटर दावों का निपटान करते समय कंपनी ने अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क (टैरिफ), 2002   के सामान्य विनियम 8 के उपबंधों का उल्लंघन किया है, जिसका पाठ निम्नानुसार हैः

     टीएल/सीटीएल दावा निपटान के प्रयोजन के लिए यह आईडीवी प्रश्नगत पालिसी अवधि के प्रचलन के दौरान परिवर्तित नहीं होगा।

     उक्त आईडीवी को कुल हानि (टीएल) / प्रलक्षित कुल हानि (सीटीएल) दावों के प्रयोजन के लिए आगे किसी अतिरिक्त मूल्यह्रास के बिना समूची पालिसी अवधि के दौरान `बाजार मूल्यके रूप में माना जाएगा।

आरोप सं. 2

बीमाकर्ता ने समय-समय पर प्राधिकरण के द्वारा साधारण बीमाकर्ताओ को यह सूचित करते हुए जारी किये गये फाइल एण्ड यूज़ दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है कि वे अगले आदेशों तक बीमा रक्षाओं के पूर्व के प्रशुल्क के वर्गों के कवरेज, शर्तों, शब्दावली/वाक्यरचना, वारंटियों, खंडों और पृष्ठांकनों (इंडार्समेंट्स) का प्रयोग जारी रखेंगे।

  • परिपत्र संदर्भ सं. 021/आईआऱडीए/एफएण्डयू/सितं-06 दिनांक 28-09-2006
  • परिपत्र संदर्भ सं. 048/आईआरडीए/डी-टैरिफ/दिसं.-07 दिनांक 18-12-2007
  • परिपत्र संदर्भ सं. 066/आईआरडीए/एफएण्डयू/मार्च-08 दिनांक 26-03-2008
  • परिपत्र संदर्भ सं. 19/आईआरडीए/एनएल/एफएण्डयू/अक्तू-08 दिनांक 6 नवंबर 2008
  • परिपत्र संदर्भ सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/073/11/2009 दिनांक 16-11-2009
  • परिपत्र संदर्भ सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/003/01/2011 दिनांक 06-01-2011

  1. बीमाकर्ता द्वारा प्रस्तुतीकरण

 बीमाकर्ता द्वारा () निरीक्षण के निष्कर्षों के उत्तर, () कारण बताओ नोटिस के लिए उत्तर एवं () वैयक्तिक सुनवाई में किये गये प्रस्तुतीकरणों का सारांश निम्नानुसार हैः

()(1) आईडीवी बीमाकर्ता की अधिकतम देयता है जिसे इस शर्त के साथ हानि के निपटान के लिए हिसाब में लिया जाना चाहिए, कि जीआर 8 और जीआर 9 में बताये गये मूल्यह्रास के मान का अनुसरण किया जाना चाहिए। हमने इन दोनों सामान्य नियमों का पालन किया है, परंतु दावा प्रक्रिया एक गणितीय समीकरण नहीं हो सकती, जैसा कि मूल्यह्रास और मूल्य आदि के बारे में जीआर में बताया गया है। दावा निपटान की मात्रा जीआर 8 और जीआर 9 के अतिरिक्त काफी हद तक उन विशिष्ट शर्तों के द्वारा संचालित है जो संविदा और उसकी अनुसूची में बताई गई हैं। 


(2)
यह बात वाहन के रखरखाव की अपेक्षा करते हुए, मानो वह बीमित नहीं हो, परम सद्भाव के सिद्धांत के साथ क्षतिपूर्ति के सिद्धांत को लागू करने के बारे में अधिक है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रश्नगत वाहन मालिक दुर्घटनाग्रस्त होने पर केवल उतनी ही प्रतिपूर्ति प्राप्त करे जो वास्तविक हो और मरम्मत/ कुल हानि आदि के लिए सचमुच अपेक्षित हो, ताकि वाहन मालिक को किसी लाभप्रद स्थिति में रखा जाए।  बीमाकर्ता को पालिसीधारकों की लाखों और करोड़ों की धनराशि का न्यासी (ट्रस्टी) होते हुए एक संवेदनशील कार्य करना पड़ता है जिससे उन बीमित व्यक्तियों की धनराशि को सुरक्षित रखा जा सके जो दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुए हैं।   

() (1) हमने जीआर-8 का उल्लंघन नहीं किया है जब वह निम्नलिखित के संदर्भ में अक्षरशः उसमें निहित भाव के साथ पढ़ा जाता हैः

i. पालिसीधारकों के हितों का संरक्षण विनियम, 2002 के विनयम 9 और 10

ii. आईआरडीएआई द्वारा लाइसेंसीकृत सर्वेक्षकों द्वारा अपने कर्तव्यों और दायित्वों के निष्पादन में तथा आईआरडीएआई (बीमा सर्वेक्षक) विनियम, 2015 के विनियम 13 और 16 एवं बीमा अधिनियम, 1938 (यथासंशोधित) की धारा 64यूएम की उप-धारा (2) और (4) के अनुसार आचरण संहिता का निष्पादन करते हुए निर्धारित औऱ सर्वेक्षित दावे।

iii. उत्पाद फाइलिंग और अनुमोदन के समय हमारे द्वारा प्राधिकरण को प्रकट की गई दावा प्रक्रिया।

iv. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई विशिष्ट पालिसीधारक हानि से लाभान्वित हो और यह कि जो उचित है उससे अधिक और आवश्यक रूप से व्यय की गई क्षतिपूर्ति वह प्राप्त करे, पालिसी की शर्तों के अनुसार दावों का उचित रूप से निपटान करना।   

(2) कुछ दावे पालिसी की शर्तों के उल्लंघन अथवा मोटर वाहन अधिनियम में निहित उपबंधों का पालन करने से संबद्ध रहे। अतः इन दावों का भुगतान आईडीवी से निम्नतर मूल्य के लिए गैर-मानक आधार पर किया गया है। इनमें से कई दावों को निराकृत किया जा सकता था, परंतु हमने एक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है तथा इन दावों का भुगतान गैर-मानक रूप में किया है। अतः हमारा पूर्ण विश्वास है कि इन दावों से जीआर 8 का कोई उल्लंघन नहीं बनता।

(3) पालिसी संविदा में बताये गये आईडीवी के किसी भी भाग को परिवर्तित अथवा संशोधित नहीं किया गया। दावों का निपटान केवल पालिसीधारकों की सहमति और संतोष के अनुरूप उचित रूप से किया गया।  हमें पालिसीधारक से कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई तथा ऐसे पालिसीधारकों से उनकी सहमति माँगने में कोई दबाव डालने का हमारा दृष्टिकोण नहीं रहा है जिनके चोरी/ कुल हानि संबंधी दावों का निपटान किया गया है। चूँकि आईडीवी का कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, अतः इसके लिए कारण दर्ज करने का कोई प्रश्न नहीं उठता।

(4) हमने बीमाकृत की पालिसी अथवा आईडीवी में कोई परिवर्तन उसकी प्रचलन अवधि के दौरान नहीं किया है, परंतु यह सुनिश्चित करने के लिए इसे उचित रूप से लागू किया गया है कि उन पालिसीधारकों का हित प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो (जिन्होंने हानि नहीं उठाई है)    

(5) हमने आईआरडीएआई के उपर्युक्त परिपत्रों के अनुपालन की पुष्टि की है। ये सभी परिपत्र निम्नलिखित से संबंधित हैं : पूर्व के मोटर प्रशुल्क (टैरिफ) का कवरेजशर्तेंशब्दावली/ वाक्यरचनावारंटियाँ - खंड और पृष्ठांकनजिसे कम नहीं किया जाना चाहिए। उत्पादों के फाइल एण्ड यूज़ के अनुमोदन के साथ इनका पालन करना अपेक्षित है। हमने इन परिपत्रों का अक्षरशः पालन किया है तथा इनके किसी भी भाग की अवज्ञा नहीं की है।

() (1) अवमानक आधार पर निपटाये गये दावों के संबंध में, दावा राशि में से कुछ कटौती की गई थी, परंतु यह दावेदारों को कोई असुविधा उत्पन्न करने के लिए नहीं थी। यह कटौती पालिसी की शर्तों के उल्लंघन के स्वरूप के आधार पर अधिकतम 25% तक थी। दावों के अनुमोदन को केन्द्रीकृत किया गया थाअतः आंतरिक रूप से कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किये गये। इस प्रकार की कटौतियों के लिए कोई कारण दर्ज नहीं किये गये।

(2) कंपनी अभिलेख-पालन (रिकार्ड कीपिंग) में सुधार करेगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कटौतियों के लिए कारण अभिलिखित किये जाएँ ताकि इससे पालिसीधारकों को कोई असुविधा हो।

(3) आगे बढ़ते हुए, कंपनी मैनुअल / प्रलेखीकरण और अभिलेख-पालन का मानकीकरण करेगी। इआईडीवी मास्टर का अनुरक्षण किया जाएगा।

(IV) मुद्दों की जाँच

  •  पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के उपबंध बीमाकर्ता को टीएल / सीटीएल दावों के संबंध में आईडीवी से कोई भी राशि की मनमाने ढंग से कटौती करने के लिए हकदार नहीं बनाते। यद्यपि बीमाकर्ता ने कहा कि दावों का निपटान पालिसीधारकों की सहमति से और उनके संतोष के अनुरूप उचित रूप से किया गया, तथापि कुछ मामलों में इसका कोई प्रमाण अभिलेखों में नहीं है। उनके प्रस्तुतीकरण कि कंपनी अभिलेख-पालन में सुधार करेगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कटौतियों के लिए कारण
    अभिलिखित किये जाएँ ताकि इससे पालिसीधारकों को कोई असुविधा होसे यह प्रतीत होता है कि इससे इस टिप्पणी की पुष्टि होती है कि पालिसीधारकों के लिए लिखित में किसी स्पष्टीकरण का कोई अभिलेख नहीं है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि केवल दावेदारों से एक सहमति पत्र प्राप्त करने से यह निर्दिष्ट होगा कि आईडीवी के संबंध में पारस्परिक रूप से समझौता-वार्ता और विचार-विमर्श किया गया है, जो कि ऐसी समझौता-वार्ता और चर्चा की वैधता को छोड़कर आईडीवी को कम करने के लिए अभिलेख-बद्ध किये गये कारणों से किया गया हो।  
  • इस बात में कोई विवाद नहीं है कि यदि पालिसीधारक ने किसी महत्वपूर्ण शर्त का उल्लंघन किया है अथवा किसी अंशदायी उपेक्षा का दोषी है, तो वह इस प्रकार के उल्लंघन अथवा अंशदायी उपेक्षा की गंभीरता के आधार पर पूर्ण दावे का हकदार नहीं हो सकता। आंतरिक रूप से कटौती गलत नहीं होगी, यदि वह पालिसी जारी करते समय पालिसीधारक को विधिवत् सूचित किये गये विधिमान्य कारणों से हो। यदि कटौती ऊपर उल्लिखित रूप में विधिमान्य कारणों से की जाती है, तो ऐसी कटौतियों को आईडीवी (जोकि बीमित राशि है) की कटौती के रूप में नहीं माना जा सकता। केवल इस कारण से कि एक बीमित राशि है, इसका अर्थ यह नहीं होता कि सभी परिस्थितियों में हानि के लिए कारणभूत पालिसीधारक की अंशदायी उपेक्षा अथवा महत्वपूर्ण शर्तों के उल्लंघन का विचार किये बिना संपूर्ण बीमित राशि का भुगतान अवश्य किया जाना चाहिए। तथापि, नैसर्गिक न्याय का तकाजा है कि की गई कटौतियों के लिए तर्काधार और कारण दावेदार को सूचित किये जाएँ। निरीक्षण अभिलेखों में बताये गये मामलों में यह जाँच करने के लिए मैं अग्रसर होता हूँ कि क्या उपर्युक्त सिद्धांत का अनुपालन किया गया है अथवा नहीं।
  • जाँच के लिए नमूना मामले लिये गये हैं (विवरण दावा अभिलेखों के अनुसार हैं)

दावा सं.

कटौती की गई राशि % में (देय राशि की तुलना में)

दावा अभिलेखों से टिप्पणियाँ

नमूना 1

43.4%

कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 2

5.1%

(i) राशि जिसके लिए बीमाकृत ने प्रतिस्थापन क्षतिपूर्ति विलेख (इसमें इसके बाद डीएसआई के रूप में उल्लिखित) में दावा प्रस्तुत किया = आईडीवी (ii) राशि जिसके लिए बीमाकृत ने सहमति दी, रिक्त रखी गई (iii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 3

12.6%

(i) राशियाँ जिनके लिए बीमाकृत ने दावा प्रस्तुत किया/ सहमति दी, डीएसआई में उल्लिखित नहीं हैं (ii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 4

14.6%

(i) डीएसआई में राशि (जिसके लिए बीमाकृत ने दावा प्रस्तुत किया) है = आईडीवी (ii) राशि जिसके लिए बीमाकृत ने सहमति दी, उल्लिखित नहीं है। इसके बजाय, यह उल्लेख किया गया है कि बीमाकर्ता को आईडीवी से कम राशि के लिए दावे का निपटान करना चाहिए (iii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 5

5.4%

कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 6

20.0%

(i) डीएसआई में राशि (जिसके लिए बीमाकृत ने दावा प्रस्तुत किया है = आईडीवी। (ii) यह उल्लिखित है कि   बीमाकर्ता को आईडीवी से कम राशि के लिए दावे का निपटान करना चाहिए (iii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 7

11.1%

कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 8

19.8%

(i) डीएसआई में राशि (जिसके लिए बीमाकृत ने दावा प्रस्तुत किया) है = आईडीवी (ii) यह उल्लिखित है कि बीमाकृत को आईडीवी से कम राशि के लिए दावे का निपटान करना चाहिए (iii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 9

32.8%

(i) डीएसआई में राशि (जिसके लिए बीमाकृत ने दावा प्रस्तुत किया) है = आईडीवी (ii) कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

नमूना 10

27.5%

कटौती के लिए कारण दर्ज नहीं किये गये हैं।

  • उपर्युक्त सभी नमूनों में पालिसी की कटौतीयोग्य राशियाँ लागू की गई हैं।

जैसा कि उपर्युक्त सारणी में दर्शाया गया है, कुछ मामलों में कटौती के लिए कोई भी कारण निहित नहीं हैं। बीमाकर्ता ने दावा राशि में कटौती के लिए कारण पालिसी की शर्तों के कथित उल्लंघन अथवा मोटर वाहन अधिनियम में निहित उपबंधों का पालन करना बताया है। यह मानते हुए भी कि आईडीवी से कम राशि के मूल्य के लिए दावे के निपटान में औचित्य है, फिर भी कटौती के लिए कारण आईआरडीए (पालिसीधारकों के हितों का संरक्षण) विनियम, 2002 के विनियम 9(5) के अनुसार पालिसीधारक को स्पष्ट रूप से दर्शाने चाहिए थे।

(V) निष्कर्ष

आईएमटी 2002 का जीआर 8 (जैसा कि आरोप 1 में वर्णित है) पालिसी अवधि के प्रचलन के दौरान आईडीवी के व्यवहार से संबंधित है। आरोप 2 में उल्लिखित परिपत्र पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के विभिन्न उपबंधों (जीआर 8 सहित) को दोहराते हैं।

उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण दर्शाता है कि संबंधित उपबंधों (अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क, 2002 का सामान्य विनियम 8) एवं उपर्युक्त आरोप 2 के अंतर्गत निर्दिष्ट संबंधित परिपत्रों के उपबंधों का दावों से की गई कटौतियों के संबंध में अपारदर्शी होने की सीमा तक उल्लंघन किया गया है। उक्त बीमाकर्ता ने यह निश्चयपूर्वक कहा है कि अवमानक आधार पर निपटाये गये दावों के संबंध में दावे की राशि से कुछ कटौती की गई है, परंतु दावेदारों के लिए असुविधा उत्पन्न करने के लिए नहीं। तथापि, यह दावेदारों से संबंधित दावों से राशियाँ कम करने के लिए और `समझौता की गई राशियोंकी गणना करने के लिए बीमाकर्ता को कोई कारण प्रदान नहीं करता। उक्त बीमाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि उक्त कटौती पालिसी की शर्तों के स्वरूप के आधार पर अधिकतम 25% तक है तथा ऐसी कटौतियों के लिए कारण दर्ज किये गये हैं। तथापि, नमूना मामले (ऊपर उल्लिखित) यह दर्शाते हैं कि बीमाकर्ता के द्वारा किया गया प्रकथन (अर्थात् कटौती अधिकतम 25% है) उचित नहीं है। ऐसी कोई पारदर्शिता नहीं है जो गैर-मानक दावा बना सकता है तथा विभिन्न मामलों में आईडीवी से राशियों की कटौती मनमाने ढंग से की गई है। तथापि जैसा कि ऊपर पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, उक्त मामले दावों के लिए निर्धारित कियाविधियों के संबंध में कुछ सीमा तक दावेदारों से कुछ अपेक्षा करने के उदाहरण प्रतिबिंबित करते हैं।

(VI) निर्णय

उपर्युक्त सभी कारकों पर विचार करने के बाद मेरी राय है कि कुल हानि / प्रलक्षित कुल हानि के दावों से संबंधित आरोप 1 और 2 की पुष्टि हो गई है तथा ऊपर दिये गये नमूने इसके लिए प्रमाण हैं। इसी समय, दावेदारों के द्वारा अनुपालन में कुछ कमियाँ भी पाई गई हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए एवं बीमा अधिनियम, 1938 (समय-समय पर यथासंशोधित) की धारा 102(बी) के उपबंधों के अनुसार प्राधिकरण में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैं इसके द्वारा निर्णय करता हूँ कि बीमाकर्ता पर 5 लाख रुपये की राशि का अर्थ-दंड लागू किया जाए।

रु. 5,00,000 (पाँच लाख रुपये) के उक्त अर्थ-दंड की राशि बीमाकर्ता द्वारा इस आदेश की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन की अवधि के अंदर शेयरधारकों के खाते में नामे डालकर एनईएफटी / आरटीजीएस के माध्यम से (जिसका विवरण अलग से सूचित किया जाएगा) विप्रेषित की जाएगी।  बीमाकर्ता के द्वारा विप्रेषण की सूचना श्रीमती यज्ञप्रिया भरत, मुख्य महाप्रबंधक (गैर-जीवन), आईआरडीएआई, सर्व सं. 115/1, फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट, नानकरामगूडा, हैदराबाद-500032 को भेजी जाए।

यदि बीमाकर्ता इस आदेश में निहित उपर्युक्त निर्णय से असंतुष्ट है, तो बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 110 के अनुसार एक अपील प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) को प्रस्तुत की जा सकती है।

                                   (पी. जे. जोसेफ)

             सदस्य (गैर-जीवन)             

स्थानः हैदराबाद

दिनांकः 05.12.2018

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    In the matter of M_s HDFC ERGO General Insurance Company Limited - Settlem.pdf

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