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Title: आदेश
Reference No.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/विविध/186/11/2018
Date: 14/11/2018
बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम की उप-धारा 6 के अधीन भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण का आदेश

आदेश

संदर्भ सं.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/विविध/186/11/2018  दिनांकः 14.11.2018

बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम की उप-धारा 6 के अधीन आईआरडीएआई का आदेश

विषयः बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम की उप-धारा 6 के अधीन भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण का आदेश

06.05.2012 से 05.05.2013 तक की अवधि के लिए ओपन मरीन कार्गो वार्षिक टर्नओवर पालिसी सं. 36010021120500000001 द्वारा कवर की गई 09.09.2012 को  जहाज एम.वी. अम्स्टरडम ब्रिज को घटित अग्नि दुर्घटना के कारण कथित हानि के दावे के मामले में – नेक्टार लाइफ साइन्सेज़ लिमिटेड, चंडीगढ़ (बीमाकृत) न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लि., लुधियाना (बीमाकर्ता)

यह आदेश बीमां अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम(6) के अधीन गुण-दोष के आधार पर एवं विधि के अनुसार एक नया आदेश पारित करने के लिए इस प्राधिकरण को निर्देश देते हुए, 2017 की अपील सं. 2 में प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी), मुंबई के आदेश दिनांक 03.01.2018 के अनुपालन में  जारी किया जा रहा है।

तथ्यात्मक आधारः

  • दी न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लि. और अन्य के विरुद्ध नेक्टार लाइफ साइन्सेज़ लि. द्वारा चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई 2014 की सिविल रिट याचिका (सीडब्ल्यूपी) सं. 26803 से उत्पन्न होने पर, माननीय न्यायालय ने अपने निर्णय दिनांक 24.12.2014 के द्वारा बीमाकर्ता को उक्त आदेश की प्रति की प्राप्ति की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के अंदर याचिकाकर्ता के दावे को स्वीकार करने अथवा निराकृत करने पर लिया गया निर्णय सूचित करने का निर्देश दिया।  यह नोट किया गया है कि बीमाकर्ता ने यह बताते हुए 07.01.2015 को उक्त दावे को अस्वीकार किया कि उक्त हानि मरीन कार्गो पालिसी के दायरे के बाहर है।
  • बीमाकृत ने पंजाब और हरियाणा के माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष पुनः 2015 की रिट याचिका सं. 16847 दायर की तथा आरोप किया कि सर्वेक्षक और बीमाकर्ता ने निरंकुश होते हुए तथा बीमाकृत को सूचित किये बिना और हानि के कारण के संबंध में अंतिम निष्कर्ष निकालने से पहले आवश्यक विशेषज्ञ की राय की अपेक्षा किये बिना सर्वेक्षण रिपोर्ट के परिशिष्ट की माँग करने के द्वारा सर्वेक्षण रिपोर्ट के निर्गम में अत्यधिक विलंब करते हुए बीमा सर्वेक्षक और हानि निर्धारक (लाइसेंसीकरण, व्यावसायिक अपेक्षाएँ और आचरण संहिता) विनियम, 2000 के विनियम 13ए(2), (3), (4) और 13(2)(xii), (xv) और (3) का उल्लंघन किया। माननीय उच्च न्यायालय ने 17.08.2015 को प्राधिकरण को वरीयतः चार माह के समय के अंदर बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम(3) के अधीन एक दूसरे सर्वेक्षक की नियुक्ति पर निर्णय करने का निर्देश दिया। प्राधिकरण ने अपने आदेश आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/विविध/ 2013/10/2016 के अनुसार एक दूसरे सर्वेक्षक की नियुक्ति न करने का निर्णय लिया।
  •  एक दूसरे सर्वेक्षक को नियुक्त करने के लिए बीमाकृत के अनुरोध को अस्वीकार करनेवाले प्राधिकरण के आदेश को बीमाकृत के द्वारा 2017 की अपील सं. 2 – नेक्टार लाइफ साइन्सेज़ लिमिटेड (विरुद्ध) आईआरडीएआई और अन्य के अंतर्गत मुंबई में माननीय एसएटी के समक्ष चुनौती दी गई। माननीय एसएटी ने दिनांक 03.01.2018 के आदेश के अनुसार आईआरडीएआई को संबंधित तकनीकी विशेषज्ञता से युक्त एक सर्वेक्षक की नियुक्ति करने तथा गुण-दोष के आधार पर और विधि के अनुसार एक नया आदेश पारित करने के निर्देश के साथ उक्त अपील का निपटान किया।  आईआरडीएआई ने धारा 64यूएम(3) (पूर्व संशोधित; बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64यूएम (5) के संशोधन के बाद) के अधीन अपने संदर्भः आईआरडीए/एनएल-आरईजी/एसएटी/02/2017 दिनांक 16.04.2018 के अनुसार राकेश नरूला एण्ड कंपनी, वडोदरा (एसएलए सं. 6064)(सर्वेक्षक) को नियुक्त किया। उक्त सर्वेक्षक ने आरएनसी/ आईआरडीएआई/2018/2002 दिनांक 04.09.2018 के अनुसार सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
  •  उक्त सर्वेक्षक अर्थात् राकेश नरूला एण्ड कंपनी ने 14.0 – किये गये दावे की अस्वीकार्यता पर अपनी निष्कर्ष स्वरूप अभ्युक्तियों में निम्नलिखित टिप्पणियाँ की हैं:-

14.1 उपर्युक्त रिपोर्ट में जो कुछ लिखा गया है, उसके आधार पर यह प्रमाणित किया गया है कि बीमाकर्ता के द्वारा कथित तौर पर उठाई गई हानि अग्नि की विषयाधीन घटना के कारण बिलकुल नहीं मानी जा सकती जो जहाज एमवी अम्स्टरडम ब्रिज पर घटित हुई थी। बीमाकृत ने आरोप लगाया कि जहाज पर आग ने गुणवत्ता में कमी के लिए मार्ग प्रशस्त किया जोकि सभी त्तथ्यों की हमारी जाँच और दावे से संबंधित सूचना के अनुसार हमारी स्वतंत्र राय में सही नहीं है।         

14.2 साथ ही, बीमाकृत ने उल्लेख किया कि कार्गो जहाज एमवी कोटा लागू में चढ़ाया जाएगा, परंतु वह बीमाकर्ता को सूचना दिये बिना जहाज एमवी अम्स्टरडम ब्रिज में चढ़ाया गया।

14.3 इतनी सारी विसंगतियों के विभिन्नतापूर्ण गंभीर स्वरूप के कारण जो इस रिपोर्ट के पाठ में विस्तार से स्पष्ट किया गया है, हमारी स्वतंत्र राय है कि बीमाकृत का दावा स्वीकार्य नहीं है तथा पालिसी की शर्तों के अनुसार बिलकुल देय नहीं है।

14.4 बीमाकृत अपने दावे को प्रमाणित और सिद्ध नहीं कर सके हैं, और न ही उत्पाद की सही पहचान, उत्पाद की सही एमएसडीएस उपलब्ध नहीं करा सके हैं तथा साथ ही, उन्होंने उत्पाद स्थिरता विशेषताएँ, तत्त्वयोगमिति (स्टाइकिआमिट्री), उत्पाद साहित्य, उत्पाद का आरएण्डडी डेटा भी प्रस्तुत नहीं किया है। इसके अलावा, परेषिती (कानसाइनी) द्वारा अस्वीकरण के ठोस कारण नहीं दिये गये हैं, परेषिती द्वारा कोई जाँच नहीं की गई है तथा कंटेनर, ड्रमों और विषयाधीन परेषित माल में निहित सामग्री पर कहीं भी अग्नि का दृश्यमान प्रभाव नहीं पाया गया है।

14.5 बीमाकृत कथित हानि / क्षति का मूल कारण भी अंतिम रूप से प्रमाणित नहीं कर सके हैं। 

14.6 बीमाकृत यह भी साबित नहीं कर सके हैं कि उक्त हानि पालिसी की शर्तों के अंतर्गत कवर की गई है तथा इस कारण से चूँकि हानि स्वीकार्य नहीं है और चूँकि लदान किये गये उत्पाद के संबंध में बहुत ही अस्पष्टता है एवं पुनःप्रसंस्करण (रीप्रासेसिंग) लागत दस्तावेज, निविष्टि-उत्पाद (इनपुट-आउटपुट) का विवरण और किये गये व्ययों के समर्थक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गये हैं, अतः हमने पुनःप्रसंस्करण के आधार पर हानि-निर्धारण नहीं किया है।

  • जहाँ तक हानि के कारण का संबंध है, सर्वेक्षक ने 13.2.6 के अंतिम भाग में निम्नलिखित टिप्पणियाँ की हैं-

परेषित माल की वापसी के बाद सर्वेक्षक के द्वारा संगृहीत नमूनों की शुद्धता ने निरंतर गिरावट दर्शाई है। बीमाकृत के अनुसार यह उत्पाद की अंतर्निहित विशेषता के कारण है कि एक बार जरा भी वह विकृत हो जाता है तो उक्त प्रक्रिया लगातार जारी रहती है तथा शुद्धता निरंतर घट जाती है। हमारे स्वतंत्र निर्धारण के अनुसार गुणवत्ता की कथित गिरावट जहाज पर अग्नि के कारण नहीं मानी जा सकती।  अतः गुणवत्ता की कथित हानि या तो मेंथाल यूएसपी परेषित माल के लिए यथाप्रयोज्य शीतलीकृत कंटेनर का प्रयोग नहीं करने के कारण है अथवा वह उत्पाद के ही किसी अंतर्निहित दोष के कारण है, जिसने समय के चलते गुणवत्ता की हानि के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।

  • बीमा पालिसी के संबंधित अपवर्जन भी सर्वेक्षक के द्वारा 14.7 पर उद्धृत किये गये हैं, जो कि निम्नानुसार हैं :-

4. किसी भी स्थिति में यह बीमा निम्नलिखित को कवर नहीं करेगा-

4.3 बीमित विषय-वस्तु के पैकिंग की अपर्याप्तता अथवा अनुपयुक्तता अथवा तैयारी द्वारा कारणभूत हानि-क्षति अथवा व्यय (इस खंड 4.3के प्रयोजन के लिए पैकिंग को कंटेनर या लिफ्टवैन में नौभरण (स्टोवेज) से युक्त माना जाएगा, परंतु केवल तभी जब ऐसा स्टोवेज इस बीमे की संलग्नता से पहले अथवा बीमाकृत के सेवकों द्वारा वहन किया जाता हो)।

परेषित माल में निहित ड्रमों पर लगाये गये लेबलों पर मेंथाल यूएसपी का उल्लेख किया गया था। उपलब्ध कराये गये एमएसडीएस के अनुसार मेंथाल के संबंध में यह प्रत्याशित है कि वह शीतलीकृत जलयान में वहन किया जाना चाहिए, जोकि नहीं किया गया। इसके अलावा, मेंथाल यूएसपी नेक्टार का लाइसेंसीकृत उत्पाद नहीं है तथा उन्होंने वस्तुतः मेंथाल का द्रव रूप में लदान किया है जबकि उनके द्वारा भेजे गये लदान दस्तावेजों ने उसे मेंथाल यूएसपी के रूप में दर्शाया। 

4.4 बीमित विषय-वस्तु के अंतर्निहित दोष अथवा उसके स्वरूप के द्वारा कारणभूत हानि-क्षति अथवा व्यय।

लदान किया गया वास्तविक उत्पाद में कुछ अंतर्निहित दोष था, क्योंकि बीमाकृत ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने वापस किये गये परेषित माल का शीघ्र पुनःप्रसंस्करण करने की अनुमति उन्हें देने के लिए सर्वेक्षक पर जोर डाला था, क्योंकि उस विषय-वस्तु की गुणवत्ता समय के चलते क्षीण हो रही है।

यद्यपि बीमाकृत के द्वारा गारंटीकृत 2 वर्ष का शेल्फ लाइफ अभी समाप्त नहीं हुआ था, तथापि उनकी अपनी स्वीकृति के द्वारा हालांकि 2 वर्ष का समय अभी समाप्त नहीं हुआ था, उन्होंने आरोप लगाया कि समय के साथ गुणवत्ता कम हो रही है, जो कि बीमाकृत के द्वारा स्पष्ट रूप से यह स्वीकृति है कि उत्पाद में एक अंतर्निहित दोष है और समय के व्यतीत होते हुए उसकी गुणवत्ता कम हो रही है, जबकि उक्त शेल्फ लाइफ के संबंध में नेक्टार द्वारा उसके विनिर्माण से 2 वर्ष की अवधि के लिए गारंटी दी गई थी।

  •  मैंने सर्वेक्षक की दिनांक 04.09.2018 की रिपोर्ट का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है तथा सर्वेक्षक द्वारा निकाले गये निष्कर्ष से असहमत होने के लिए मैं कोई कारण नहीं पाता। अतः सर्वेक्षक राकेश नरूला (एसएलए-6064), द्वारा प्रस्तुत सर्वेक्षण रिपोर्ट पर विचार करने के उपरांत आईआरडीएआई बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 64 यूएम(6) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्णय करता है कि उक्त दावा देय नहीं है। तदनुसार, बीमाकर्ता को इस निदेश का तत्काल अनुपालन करने तथा बीमाकृत को आवश्यक सूचना जारी करने का निर्देश दिया जाता है।      

(पी. जे. जोसेफ)

सदस्य (गैर-जीवन)

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    Order of IRDAI, under sub-section 6 of Section 64UM of Insurance Act, 1938.pdf

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