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Title: आदेश
Reference No.: आईआरडीए/एनएल/ओआरडी/ओएनएस/134/08/2018
Date: 24/08/2018
मेसर्स रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (आरजीआईसीएल) – मोटर दावों का न

मेसर्सरिलायंस जनरल इंश्योरेंसकंपनी लिमिटेडको जारी किये गयेकारण बताओ नोटिसदिनांक 9 अगस्त2017 के उत्तर एवंभारतीय बीमा विनियामकऔर विकास प्राधिकरणके कार्यालय,तीसरीमंजिल, परिश्रमभवन, बशीरबाग, हैदराबादमें 16 नवंबर2017 को श्री पी.जे.जोसेफ,सदस्य(गैर-जीवन),भारतीयबीमा विनियामकऔर विकास प्राधिकरण(आईआरडीएआई)कीअध्यक्षता मेंआयोजित वैयक्तिकसुनवाई के दौरानकिये गये उनकेप्रस्तुतीकरणोंके आधार पर निम्नानुसारविवरण दियाजा रहा हैः

 

(I)      पृष्ठभूमि

मोटर वाहनकुल हानि / चोरीसंबंधी दावों केमामले में बीमाकृतघोषित मूल्य(इसमें इसकेबाद आईडीवी केरूप में उल्लिखित)सेकम राशियों केनिपटान करनेवालेसाधारण बीमाकर्ताओंसे संबंधित कुछशिकायतें प्राप्तहोने पर, प्राधिकरणने साधारण बीमाकर्ताओंसे मोटर दावोंसे संबंधित डेटामँगाया था।

 

रिलायंसजनरल इश्योरेंसकंपनी लिमिटेड(इसमें इसकेबाद आरजीआईसीएल/ बीमाकर्ताके रूप में उल्लिखित)सेप्राप्त डेटा काविश्लेषण करनेके उपरांत,प्राधिकरणने मोटर (निजीक्षति) कुलहानि/ चोरीसंबंधी दावों केमामलों के निपटानके विषय में18 से 20 अक्तूबर2012 तक आरजीआईसीएलका संकेन्द्रितस्थान पर (ऑनसाइट)निरीक्षणसंचालित किया था। उक्तनिरीक्षण में वित्तीयवर्ष 2009-10 और2010-11 के दौरानबीमाकर्ता द्वाराकिये गये मोटरदावों के निपटानको शामिल कियागया।

 

प्राधिकरणने उक्त निरीक्षणके निष्कर्ष बीमाकर्ताको दिनांक28 जून 2016 द्वारासूचित किये थे।बीमाकर्ता द्वारादिनांक 10 अगस्त2016 के अपने पत्रके अनुसार कियेगये प्रस्तुतीकरणोंकी जाँच करने केबाद प्राधिकरणने दिनांक9 अगस्त 2017 काएक`कारण बताओ नोटिस~जारीकिया जिसका उत्तरबीमाकर्ता द्वारादिनांक 28 अगस्त2017 और 4 अक्तूबर2017 के अपने पत्रोंके अनुसार दियागया। जैसाकि उन पत्रों मेंअनुरोध किया गयाथा, बीमाकर्ताको एक वैयक्तिकसुनवाई का अवसर16 नवंबर 2017 कोदिया गया। श्रीराकेश जैन,मुख्यकार्यकारी अधिकारी,श्रीमोहन खांडेकर,कंपनीसचिव और मुख्यअनुपालन अधिकारी,श्रीसुदीप बनर्जी,मुख्यपरिचालन अधिकारीतथा सुश्री आर.लक्ष्मी,प्रमुख(मोटर दावे)उक्तसुनवाई में बीमाकर्ताकी ओर से उपस्थितथे। श्री पी.जे.जोसेफ,सदस्य(गैर-जीवन),श्रीमतीयज्ञप्रिया भरत,मुख्यमहाप्रबंधक(गैर-जीवन),श्रीके. महीपालरेड्डी, उपमहाप्रबंधक(गैर-जीवन)औरश्री पी. नरसिंहारेड्डी, विशेषकार्य अधिकारीउक्त वैयक्तिकसुनवाई में उपस्थितरहे थे।

 

II. आरोप

आरोपसं. 1:

कंपनीने मोटर दावोंका निपटान करतेहुए, अखितभारतीय मोटर प्रशुल्क,2002 के सामान्यविनियम 8 केउपबंधों का उल्लंघनकिया है, जोनिम्नानुसार हैः

"टीएल/सीटीएलदावा निपटान केप्रयोजन के लिए,प्रश्नगतपॉलिसी अवधि केप्रचलन के दौरानआईडीवी परिवर्तितनहीं होगा।"

"कुलहानि (टीएल)/ प्रलक्षितकुल हानि(सीटीएल)दावों केप्रयोजन के लिएआईडीवी को आगेऔर किसी मूल्यह्रासके बिना समूचीपॉलिसी अवधि केदौरान `बाजारमूल्य~ केरूप में माना जाएगा।"

 

आरोपसं. 2

बीमाकर्ताने समय-समयपर साधारण बीमाकर्ताओंको यह सूचित करतेहुए जारी कियेगये फाइल एण्डयूज़ दिशानिर्देशों/ परिपत्रोंका उल्लंघन कियाहै कि वे अगले आदेशोंतक बीमा-रक्षाओं(इंश्योरेंसकवर्स) केपूर्व के प्रशुल्कके कवरेज, शर्तों,शब्दावली,वारंटियों,खंडोंऔर पृष्ठांकनोंका प्रयोग करनाजारी रखेंगे।

क)   परिपत्रसंदर्भ सं.021/आईआरडीए/एफएण्डयू/सितं.-06दिनांक28-09-2006

ख)   परिपत्रसंदर्भ सं.048/आईआरडीए/डी-टैरिफ़/दिसं.-07दिनांक18-12-2007

ग)    परिपत्रसंदर्भ सं.066/आईआरडीए/एफएण्डयू/मार्च-08दिनांक26-03-2008

घ)    परिपत्रसंदर्भ सं.19/आईआरडीए/एनएल/एफएण्डयू/अक्तू.-08दिनांक6 नवंबर 2008

ङ)     परिपत्रसंदर्भ सं.आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/073/11/2009दिनांक16-11-2009

च)    परिपत्रसंदर्भ सं.आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/003/01/2011दिनांक06.01.2011

 

बीमाकर्ताद्वारा प्रस्तुतीकरण

1.  दावोंका निपटान उनकेअपने-अपनेगुण-दोषके आधार पर तथाकानूनी सिद्धांतोंका पालन करते हुएकिया गया है। कंपनीने अपना दावा निपटाननिर्णय दावों कीजाँच-पड़तालसे उत्पन्न होनेवालेतथ्यों के स्वतंत्रनिर्णयन पर एवंपॉलिसीधारकोंके समग्र हित,जिसकासंरक्षण हर समयकिया जाता है,कोसुनिश्चित करतेहुए आधारित रखाहै।

2.  कंपनीने इस विषय में`गैर-मानकनिपटान~ (नॉन-स्टैंडर्डसेटिलमेंट)कोअपनाया है,जहाँग्राहक द्वाराबीमा पॉलिसी कीकिसी शर्त का पालननहीं किया जाना/ उल्लंघन करनानिहित है। कंपनीने विभिन्न न्यायिकफोरमों द्वाराविधिवत् मान्यताप्राप्तमानक उद्योग प्रथाका अनुसरण कियाहै। ऐसी प्रथाको बीमाकृत व्यक्ति/ पॉलिसीधारकके पक्ष में समझाजाता है जहाँ बीमाकृतव्यक्ति द्वारापॉलिसीकी शर्तों का पालननहीं करने की स्थितिमें बीमा कंपनीअपने दायित्व कोनिरस्त नहीं करती।

3.  दावोंका मूल्यांकन औरनिपटान करते समय,कंपनीने भी विभिन्नन्यायिक फोरमों,विशेषरूप से माननीयसर्वोच्च न्यायालयद्वारा निर्धारितसुस्थापित सिद्धांतोंका पालन किया।इस संबंध में शीर्षस्थन्यायालय ने अनेकमामलों में(अधिक विशिष्टरूप से 2010 कीसिविल अपील सं.2703 में) निर्#2343;ारतकिया था कि जहाँभी बीमाकृत व्यक्तिपॉलिसी की किसीशर्त का उल्लंघनकरता है, वहाँबीमा कंपनीदावे को `पूर्णतः~निरस्तनहीं कर सकती,परंतुउसे दावे का निपटान`गैर-मानकआधार~ परकरना चाहिए।

4.  माननीयसर्वोच्च न्यायालयद्वारा निर्धारितविधि का पालन करतेसमय, कंपनीने पॉलिसी की शर्तके उल्लंघन केआधार पर दावोंको अस्वीकार करनेके बजाय, दावोंपर कार्रवाई गैर-मानकआधार पर की। अन्वेषकोंको दावा राशि केसंबंध में कोईबातचीत करने अथवानिपटान करने केलिए कोई अधिदेश(मैंडेट)नहींदिया गया है,तथाअन्वेषकों द्वाराकी गई टिप्पणियाँअधिकांशतः अन्वेषणद्वारा सुस्पष्टतथ्यों से उत्पन्नहोनेवाले निष्कर्षहैं। किसीदावे का निपटानगैर-मानकआधार पर करने केलिए कंपनी का निर्णयक्षतिपूर्ति केसिद्धांत पर आधारितहै, जिससेएक वर्ग के रूपमें पॉलिसीधारकोंके हितों के संरक्षणको सुनिश्चित कियाजा सके, जबकिकंपनी न्यायिकनिर्णयों में निर्धारितकानून का विधिवत्पालन करती है।

5.  सभीदावा फाइलों परविधिवत् गैर-मानककटौती के कारणसे एक टिप्पणीरहती है। कंपनीयह निवेदन करनाचाहती है कि उक्तकटौती की राशिमें अंतर केवलउल्लंघन की गंभीरताऔर परिस्थितियोंके आधार पर ही है।

6.  दावोंमें कुछ विसंगतियाँथीं जहाँ आईडीवीको कम किया गयाथा। कंपनी का उद्देश्यदावे का निपटानकरना और ग्राहककी सहायता करनाथा, परंतुयह मानक ग्राहकको देना नहीं था।यदि विसंगतियोंकी संख्या अधिकहै, तो वह दावेकी कमी में संचयीप्रतिशत होगा जोदावे के निपटानके उद्देश्य कोही समाप्त कर देता।पूर्णतः अपेक्षाओंसे युक्त दावेको और अपेक्षाओंमें कमी से युक्तदावे को समान नहींमाना जा सकता।दावेदार की ओरसे उपेक्षा कोपरिमाणित नहींकिया जा सकता।कंपनी दावे कोसमग्र दृष्टि सेदेखती है। उद्देश्यकेवल निपटान केलिए अग्रसर होनाथा और ग्राहक कोसहायता प्रदानकरना था।

7.  तकनीकीतौर पर, ग्राहकके साथ चर्चा करनेऔर उसकी सहमतिलेने के अतिरिक्तकोई अन्य मार्गनहीं है। अधिकांशदावों के संबंधमें बातचीत कीगई थी, विचार-विमर्शकिया गया था। उन्मोचन(डिस्चार्ज)वाउचरदावेदार की सहमतिको दर्शाता है।दावे के संबंधमें समझौता ग्राहकोंकी भूल-चूकके कारण था। पॉलिसीकी शर्तों के उल्लंघनके लिए संपूर्णदावे को अस्वीकृतकरने के बजाय,दावेके संबंध में दावेदारसे बातचीत की गईतथा दावा राशिमें कमी करने केलिए सहमति प्राप्तकी गई। यह ग्राहककी सहायता करनेके उद्देश्य सेकिया गया। पूर्वकी तुलना में दावोंपर कार्रवाई करनेमें वर्तमान मेंउल्लेखनीय सुधारहुआ है।

8.  दावाफाइलों में कुछत्रुटियाँ थीं।उक्त कमियाँ दावानोटों में उचितरूप से दर्ज नहींकी गई थीं। प्रलेखीकरणठीक नहीं था। तथापि,उद्देश्यकिसी विधिसम्मतदावे को कम करनानही था। अब दावोंपर कार्रवाई कुशलतापूर्वककरने के लिए सशक्तप्रणाली विद्यमानहै।

 

III. विषयोंकी जाँच

(क)पूर्वके प्रशुल्क(टैरिफ) केउपबंध टीएल/सीटीएलदावों के संबंधमें आईडीवी सेकिसी राशि की कटौतीमनमाने ढंग सेकरने के लिए बीमाकर्ताको हकदार नहींबनाते। यद्यपिबीमाकर्ता ने कहाहै कि कटौती केलिए कारण पॉलिसीधारकोंको स्पष्ट कियेगये हैं और बीमाकर्ताके दायित्व केनिर्वहण में अंतिमराशि के लिए उनकीसहमति प्राप्तकी गई है, तथापिइसके लिए अभिलेखोंमें कुछ मामलोंमें कोई साक्ष्यनहीं है। उनकीप्रस्तुति कि ऐसीप्रणाली भविष्यमें स्थापित कीजाएगी, इसटिप्पणी की पुष्टिकरने के लिए प्रतीतहोती है कि पॉलिसीधारकको लिखित में स्पष्टीकरणदेने का कोई अभिलेखनहीं है। मैं इसबात से सहमत नहींहूँ कि दावेदारोंसे एक सहमति-पत्रप्राप्त करना यहनिर्दिष्ट करेगाकि आईडीवी के संबंधमें पारस्परिकतौर पर समझौताकिया गया है औरचर्चा की गई है,उनकारणों पर आईडीवीको कम करने के लिएऐसी वार्ता औरविचार-विमर्शकी वैधता को एकतरफ रखते हुए जोअभिलेख में नहींहैं।

(ख)इसबात पर विवाद नहींहै कि यदि पॉलिसीधारकने किसी महत्वपूर्णशर्त का उल्लंघनकिया है अथवा वहअंशदायी उपेक्षाका दोषी है,तोवह प्रत्येक ऐसीअंशदायी उपेक्षाकी गंभीरता केआधार पर संपूर्णदावे के लिए हकदारनहीं हो सकता।स्वतः कटौती अमान्यनहीं हो सकती यदिवह पॉलिसी जारीकरते समय पॉलसीधारकको विधिवत् सूचितकिये गये वैध कारणोंसे है। यदि कटौतीउपर्युक्तानुसारवैध कारणों सेकी गई है, तोऐसी कटौतियों कोआईडीवी (जोकिबीमित राशि है)कीकटौती के रूप मेंनहीं माना जा सकता।केवल इस कारण सेकि बीमित राशिविद्यमान है,इसकाअर्थ यह नहीं हैकि सभी परिस्थितियोंमें पॉलिसीधारककी उपेक्षा अथवामहत्वपूर्ण शर्तोंके उल्लंघन केकारण हानि के प्रतिपॉलिसीधारक केअंशदान का विचारकिये बिना संपूर्णबीमित राशि काभुगतान आवश्यकरूप से किया जाए।तथापि, नैसर्गिकन्याय के सिद्धांतके लिए आवश्यकहोगा कि दावेदारको तर्काधार औरकारणों की सूचनादी जाए। निरीक्षणअभिलेखों में दर्जमामलों में मैंयह देखने के लिएअग्रसर हो रहाहूँ कि क्या उपर्युक्तनैसर्गिक न्यायके सिद्धांत कापालन किया गयाहै अथवा नहीं।

(ग) जाँचके लिए नमूना(सैम्पल)मामलेलिये गये हैं(विवरण दावाअभिलेखों के अनुसार)

दावा सं.

आईडीवी के % के रूप में कटौती की गई राशि

आईडीवी में कटौती के लिए दावा अभिलेखों में नोट किये गये कारण

नमूना 1

25.0%

शून्य

नमूना 2

12.9%

बीमाकृत व्यक्ति दूसरी चाबी प्रस्तुत नहीं कर सका। दावा राशि के विषय में समझौता किया गया और कुछ राशि की बचत की गई

नमूना 3

20.1%

एक चाबीगैर-मानकीकृत आधार

नमूना 4

24.9%

परमिट सं. चोरी के समय वैध नहींएक चाबीविसंगति के लिए बातचीत की गई

नमूना 5

20.0%

हानि के समय परमिट निष्प्रभावी।

नमूना 6

19.1%

केवल 1 चाबी प्रस्तुत की गई

नमूना 7

17.7%

एक चाबी की हानि के कारण तथा पार्किंग उचित नहीं थाअतः आईडीवी के संबंध में वार्ता की गईसूचना देने में विलंब

नमूना 8

12.6%

केवल एक चाबीमूल दस्तावेज खो गये -

नमूना 9

5.3%

दावा संबंधी दस्तावेजों की प्रस्तुति में विलंब।

नमूना 10

11.6%

सूचना देने में और एफआईआर में विलंबकेवल 1 चाबीआईडीवी के संबंध में समझौता किया गया

नमूना 11

25.0%

एफआईआर और सूचना देने में विलंब के कारण 25% की कटौती की गई

नमूना 12

16.4%

सूचना देने में विलंबवार्ता के द्वारा राशि की कटौती की गई

नमूना 13

3.7%

शून्य

नमूना 14

29.9%

योग्यता (फिटनेस) प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गयाविसंगति के लिए 30% का समझौता किया गयासूचना देने में विलंबएफआईआर में विलंब

नमूना 15

32.8%

बीमाकृत व्यक्ति की ओर से उपेक्षा (कैबिन दरवाजा तालाबंद नहीं किया गया था)

 

दावानोट पर दर्ज कियागया था कि वार्ताके द्वारा कुछराशि की बचत कीगई। यह केवल यहीदर्शाता है किकंपनी का उद्देश्यगुण-दोषके आधार पर दावेका निपटान करनेके बजाय धनराशिकी बचत करना है।यह मानते हुए भीकि निपटान मेंगुण है, कटौतीके लिए कारण पॉलिसीधारकको दर्शाये जानेचाहिए थे संदर्भःआईआरडीए (पॉलिसीधारकोंके हितों का संरक्षण)विनियम,2002 का उपबंध9(5); बाद में2017 में आशोधित

 

बीमाकर्ताने दावा राशि मेंकटौती के लिए कारणपॉलिसीधारक द्वारापॉलिसी की शर्तोंका कथित उल्लंघनबताया। तथापि,दावेपर कार्रवाई करतेसमय दावा नोट मेंइस आशय के केवलकुछ ही टिप्पण(नोटिंग)हैं।

 

IV. निष्कर्ष

उपर्युक्ततथ्यों का विश्लेषणयह दर्शाता हैकि संबंधित उपबंधों,(अखिल भारतीयमोटर प्रशुल्क,2002 के सामान्यविनियम 8) तथाऊपर आरोप सं.2 के अंतर्गतनिर्दिष्ट संबंधितदिशानिर्देशोंके उपबंधों काउल्लंघन दावोंसे की गई कटौतियोंके संबंध में पारदर्शीन होने की सीमातक किया गया है।बीमाकर्ता ने दावाकिया कि यह पायागया कि बीमाकृतव्यक्तियों सेकुछ अनुपालन कीआवश्यकता थी जैसाकि उपर्युक्त नमूनोंमें उदाहरण स्वरूपदिया गया है। तथापि,यहबीमाकर्ता के लिएबीमाकृत व्यक्तियोंके साथ उद्देश्यपूर्वककिये गये समझौतोंके आधार पर दावोंसे राशियों कीकटौती करने तथा`समझौता की गईराशियों~ कीगणना करने के लिएबीमाकर्ता को कोईआधार प्रदान नहींकरता। वास्तव में,यहदेखा गया है किइन तथाकथित समझौतोंके लेनदेन मेंपारदर्शिता काअभाव रहा है क्योंकिकी गई कटौती काविवरण बीमाकृतव्यक्तियों कोप्रायः नहीं दियागया है। साथ ही,इसबारे में पारदर्शितानहीं है कि एक गैर-मानकदावा कैसे बनताहै तथा विभिन्नमामलों में आईडीवीसे की गई कटौतियोंकी राशियाँ मनमानेढंग से काटी गईहैं। तथापि,उक्तमामले, जैसाकि पहले उल्लेखकिया जा चुका है,बीमाकृतव्यक्तियों केविषय में यह पायेजाने के उदाहरणप्रतिबिंबित करतेहैं कि दावों केलिए निर्धारितक्रियाविधियोंके संबंध में उनकेद्वारा कुछ अनुपालनअपेक्षित है।

 

V. निर्णय

उपर्युक्तसभी कारकों परविचार करने केउपरांत मेरी रायहै कि कुल हानि/ प्रलक्षितकुल हानि के दावोंसे संबंधित आरोप1 और आरोप2 प्रमाणित कियेगये हैं तथा ऊपरदिये गये नमूनेइसके लिए साक्ष्यहैं। इसी के साथ,बीमाकृतव्यक्तियों द्वाराअनुपालन में कुछकमियों के रहतेहुए, बीमाअधिनियम, 1938 (समय-समयपर यथासंशोधित)कीधारा 102(बी)केउपबंधों के अनुसारप्राधिकरण मेंनिहित शक्तियोंका प्रयोग करतेहुए मैं इसकेद्वारा इस निष्कर्षपर पहुँचता हूँकि बीमाकर्ता पर5 लाख रूपये काअर्थदंड लगायाजाए।

 

रु.5,00,000 (केवल पाँचलाख रुपये)काउक्त अर्थदंड बीमाकर्ताके द्वारा इस आदेशकी प्राप्ति कीतारीख से 15 दिनकी अवधि के अंदरशेयरधारकों केखाते में नामेडालकर एनईएफटी/ आरटीजीएस केमाध्यम से(जिसका विवरणअलग से सूचित कियाजाएगा) विप्रेषितकिया जाएगा। बीमाकर्ताद्वारा विप्रेषणकी सूचना श्रीमतीयज्ञप्रिया भरत,मुख्यमहाप्रबंधक(गैर-जीवन),आईआरडीएआई,सर्वेसं. 115/1, फाइनैंशियलडिस्ट्रिक्ट,नानकरामगूडा,हैदराबाद-500032 को भेजी जाए।

 

यदि बीमाकर्ताइस आदेश में निहितउपर्युक्त निर्णयसे असंतुष्ट महसूसकरता है, तोबीमा अधिनियम,1938 की धारा110 के अनुसार प्रतिभूतिअपीलीय न्यायाधिकरण(एसएटी) को अपीलप्रस्तुत की जासकती है।

 

(पी.जे. जोसेफ)

सदस्य(गैर-जीवन)

स्थानःहैदराबाद

दिनांकः21.08.2018

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