आईआरडीएआई वार्षिक सेमिनार 2013 - पॉलिसी धारक

आईआरडीएआई वार्षिक सेमिनार 2013

आईआरडीए पॉलिसीधारकों की सुरक्षा पर वार्षिक सेमिनारों की एक श्रृंखला आयोजित करता है। इस प्रकरण में, 27 नवंबर 2013 को मुम्बई में“पॉलिसीधारकों की सुरक्षा तथा कल्याण”विषय पर चौथा सेमिनार आयोजित किया गया।

सेमिनार का शुभारम्भ बीमा विनियम एवं विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री टी.एस.विजयन ने किया। उन्होंने सेमिनार के दौरान निम्नलिखित को उद्घाटन किया:

1 उपभोक्ता मामले विभाग की वार्षिक पुस्तिका2012-13

2 'सर्वेक्षकों और क्षति आंकलनकर्ताओं'हस्त-पुस्तिका

3आईआरडीए के पहलों पर आधारित वृत्तचित्र

4 हास्य पुस्तक श्रृंखला की एनीमेशन फिल्में-संस्करण-3

5 उपभोक्ता शिक्षा वेबसाइट का मोबाइल संस्करण

6 साधारण बीमा परिषद द्वारा प्रकाशित भारतीय गैर-जीवन बीमा उद्योग वार्षिकी2012-13और

7भारत में जीवन बीमा एजेंट के फैलाव पर इंश्योरेंस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की एक रिपोर्ट।

स्वागत भाषण के दौरान, आईआरडीए के सदस्य श्री डीडी सिंह ने बीमाकर्ताओं से आह्वान किया कि वह ग्राहकों की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील बनें और इन्हें पूरा करने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करें। उन्होंने बीमाकर्ताओं को शिकायतों से संबंधित आँकड़ों के विश्लेषण द्वारा शिकायतों के कारणों से निपटने का प्रयास करने की सलाह भी दी।

आईआरडीए के चेयरमैन श्री टी.एस. विजयन ने अपने भाषण के दौरान कहा कि बीमाकर्ताओं को आसान, मानकीकृत, किफायती तथा सहज बोधगम्य उत्पाद तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने बीमाकर्ताओं से आग्रह किया कि वे स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में धोखाधड़ी रोकने के लिए कदम उठाएँ, क्योंकि इससे उपभोक्ताओं पर स्वास्थ्य बीमा लेने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने जोर दिया कि दावा की प्रतिपूर्ति करना बीमाकर्ता द्वारा बीमित व्यक्ति पर किया गया कोई एहसान नहीं है, बल्कि एक अनुबंधात्मक बाध्यता है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों में बीमा साक्षरता बढ़ाने के लिए सभी बीमाकर्ताओं से जीवन व साधारण बीमा काउंसिल के साथ आने का आह्वान किया। उन्होंने पॉलिसीधारकों की सुरक्षा तथा बीमा उद्योग के विकास के दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आईआरडीए द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा की।

आरंभिक सत्र के बाद, महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने अनुभव साझा करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं से चर्चा के लिएचार विशेष सत्रआयोजित किए गए।

टपहले सत्र का संचालन श्री आर.के. नायर, सदस्य (एफ एंड ए), आईआरडीए के द्वारा किया गया, जिसका विषय थाराष्ट्रीय रणनीति के तहत बीमा साक्षरता,जिसमें आम लोगों के लिए वित्तीय साक्षरता का महत्त्व प्रतिपादित किया गया। वित्तीय समावेश में सुधार लाने तथा लोगों के वित्तीय कल्याण के लिए वित्तीय साक्षरता प्रदान करना बहुत ज़रूरी है, जो प्रत्यक्षतः वित्तीय स्थायित्व को प्रभावित करती है।

दूसरे सत्र का संचालन भी श्री आर.के. नायर, सदस्य (एफ एंड ए), आईआरडीए के द्वारा ही किया गया, जिसका नाम था“क्या आप उपभोक्ता की आवाज सुन पाते हैं?”इस सत्र के सभी वक्ता इस बात पर एकमत थे कि पॉलिसीधारकों से सही तरीके से पेश आना चाहिए और पूरी बीमा प्रक्रिया के दौरान उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि बीमाकर्ताओं को ये समझना चाहिए कि ग्राहकों को अपनी शिकायतें रखने में सक्षम बनाने के लिए प्रभावी प्रणाली उपलब्ध कराने तथा उनकी शिकायतों को सुना जाना, उनकी जाँच तथा अविलंब समाधान किया जाना सुनिश्चित करने से उपभोक्ताओं में विश्वास का संचार होगा जिससे अधिक बीमा समावेशन में मदद मिलेगी।

तीसरे सत्र का संचालन आईआरडीए के सदस्य (वितरण) श्री डीडी सिंह ने किया, सत्र का विषय था”उपभोक्ता शिक्षण के लिए अभिनव माध्यमों का उपयोग”। इस सत्र का सारांश था कि वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के लिए लोगों, खासकर युवाओं का ध्यान खींचने और कल्पनाशीलता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी और प्रौद्योगिकी के माध्यम से अभिनव प्रयोग समय की माँग हैं। उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के ऐसे विभिन्न तरीकों पर चर्चा की गई, जिसमें प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।

अंतिम सत्र, "स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में गहन शोध"; का संचालन आईआरडीए के सदस्य (गैर-जीवन) श्री एम, रामप्रसाद ने किया, जिसमें भारत के सबसे तेजी से उभरते बीमा क्षेत्रों में से एक, स्वास्थ्य बीमा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। स्वास्थ्य बीमा खराब स्वास्थ्य और उपचार की लागत के कारण व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की गंभीरता कम करने में काफी उल्लेखनीय भूमिका निभाती है। इस सत्र के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा की गई, वह थीं - एक उपयुक्त सेवा वितरण संरचना तथा फर्जी प्रबंधन से निपटने के लिए प्रणालियाँ तैयार करने के द्वारा पॉलिसीधारक के लिए सेवा-उपलब्धता तथा सुरक्षा सुनिश्चित करना,जिस पर ध्यान देने से व्यावसायिक और सामाजिक, दोनों उद्देश्य पूरे हो सकते हैं।

सेमिनार में बीमा कंपनियों के प्रमुख पदाधिकारी, बीमा लोकपाल, शिक्षाविद, वित्तीय विनियामक प्राधिकरणों और उपभोक्ता संगठनों के प्रतिनिधि, बीमा मध्यस्थ और आईआरडीए के अधिकारी शामिल हुए।

डॉ. जी. मल्लिकार्जुन, ओएसडी (शिकायत), आईआरडीए ने समापन भाषण देते हुए कहा कि सेमिनार के दौरान हुए विचार-विमर्श और दिए गए सलाह न सिर्फ बीमा क्षेत्र के स्वस्थ तथा सतत विकास के लिए, बल्कि देश के बीमा ढांचा में पॉलिसीधारकों का विश्वास और भरोसा बढ़ाने के लिए भी महत्त्वपूर्ण थे। उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन का प्रस्ताव भी रखा।

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